सुप्रीम कोर्ट की एक ऐतिहासिक सुनवाई में वक्फ एक्ट को लेकर जो फैसला आया है, वो न सिर्फ कानून के पन्नों में दर्ज होगा, बल्कि भारत के सामाजिक और धार्मिक ताने-बाने को भी गहराई से प्रभावित कर सकता है। गुरुवार, 17 अप्रैल को हुई इस सुनवाई में कोर्ट ने केंद्र सरकार और याचिकाकर्ताओं के बीच जवाब-तलब का खेल शुरू कर दिया है। पर कहानी इतनी सीधी नहीं… क्योंकि इस बीच कोर्ट ने कुछ ऐसे निर्देश दिए हैं जो देश के हर नागरिक के कान खड़े कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच – मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस संजय कुमार – ने इस मामले की सुनवाई की। याचिकाकर्ताओं की ओर से देश के सबसे सीनियर वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन जैसे दिग्गज कोर्ट में पेश हुए। वहीं केंद्र सरकार का पक्ष रखने आए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से अनुरोध किया कि संसद द्वारा पारित कानून पर तत्काल रोक लगाना न्यायसंगत नहीं होगा। उन्होंने कोर्ट को यह भी बताया कि वक्फ बोर्ड से जुड़े हजारों गांवों की जमीन पर दावे सामने आए हैं, और आम नागरिकों के हितों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने फिलहाल कानून पर रोक तो नहीं लगाई है, लेकिन मौजूदा स्थिति को बरकरार रखने के निर्देश दिए हैं। इसका मतलब है कि अगले एक हफ्ते तक वक्फ बोर्ड या वक्फ काउंसिल में कोई नई नियुक्ति नहीं की जाएगी। वक्फ घोषित संपत्तियों को डिनोटिफाई नहीं किया जाएगा और इन पर पूर्ववत स्थिति बनी रहेगी। कोर्ट ने राज्य सरकारों को भी स्पष्ट कहा कि वे भी इन निर्देशों का पालन करें। वहीं एसजी तुषार मेहता ने भरोसा दिलाया कि केंद्र सरकार कोर्ट के निर्देशों का पूरी तरह पालन करेगी और अगर किसी राज्य में कोई नियुक्ति की जाती है, तो उसे वैध नहीं माना जाएगा।
मुख्य न्यायाधीश ने याचिकाकर्ता पक्ष को कड़े निर्देश दिए हैं – पांच दिन में जवाब दाखिल करें और याचिकाओं की संख्या पांच तक सीमित करें। उन्होंने साफ कर दिया कि सुप्रीम कोर्ट 100-120 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई नहीं कर सकता। सिर्फ पांच याचिकाएं सुनी जाएंगी, बाकी को निस्तारित या आवेदन के रूप में ही माना जाएगा। कोर्ट ने कहा, “हम चाहते हैं कि दोनों पक्ष अपने-अपने नोडल वकील तय करें और जिरह करने वाले वकीलों की सूची कोर्ट को सौंपें।”
यह मामला सिर्फ वक्फ संपत्तियों तक सीमित नहीं है – ये कानूनी बहस उस ऐतिहासिक ज़मीन पर हो रही है जिस पर देश के लाखों नागरिकों के हक और अस्तित्व की बात जुड़ी है। सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ एक्ट 1995 और 2013 को चुनौती देने वाली याचिकाओं को भी विशेष रूप से सूचीबद्ध करने का निर्णय लिया है। यह सुनवाई न केवल धार्मिक न्यासों के अधिकारों की व्याख्या करेगी, बल्कि भारत की भू-संपत्ति और सामाजिक न्याय के समीकरणों को भी परिभाषित करेगी।
अब अगली सुनवाई 5 मई को होगी, जिसमें भारत की न्यायपालिका यह तय करेगी कि धार्मिक और सामाजिक संतुलन के इस नाजुक मसले पर संविधान की लकीर कैसी खींची जाए।




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