Friday, December 5, 2025

MP NEWS: पटरियाँ नदारद, ट्रेनें गायब… लेकिन रिजर्वेशन काउंटर चालू! — रेल यात्रियों के साथ यह मज़ाक कब तक?

कल्पना कीजिए कि आप किसी गाँव या कस्बे में रहते हैं, जहाँ आज तक कोई ट्रेन आई ही नहीं। पटरियाँ बिछी नहीं, ट्रैक का नामोनिशान तक नहीं। फिर भी वहाँ पर टिकट मिल रहे हैं — रिजर्वेशन टिकट! सुनकर अजीब लगता है ना? लेकिन यह कोई कहानी नहीं, हकीकत है! भारत जैसे देश में, जहाँ करोड़ों लोग ट्रेन पर निर्भर हैं, वहाँ कुछ ऐसे स्टेशन हैं जहाँ रेल है नहीं… फिर भी रेलवे टिकट जारी किए जा रहे हैं! और दूसरी तरफ, ऐसे स्टेशन हैं जहाँ ट्रेनें रोज़ रुकती हैं, हजारों यात्री सफर करते हैं, लेकिन उन्हें रिजर्वेशन की सुविधा तक नसीब नहीं होती। यह भारतीय रेलवे की एक अजीब मगर सच्ची तस्वीर है, जिसे हम सामने ला रहे हैं।

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा पर फैले झांसी रेल मंडल के अंतर्गत आने वाले कुछ स्टेशन — जैसे अंबाह, श्योपुर और हमीरपुर के पास स्थित राठ — ऐसे हैं जहाँ ट्रेनें चलती ही नहीं। श्योपुर में तो सौ सालों से नैरोगेज ट्रेनें चल रही थीं, लेकिन 2020 में कोरोना महामारी के दौरान इनका संचालन रोक दिया गया। आज तक न तो पूरी ब्रॉडगेज लाइन तैयार हुई और न ही ट्रेनें वापस आईं। लेकिन मज़े की बात ये है कि यहाँ पर आज भी रिजर्वेशन काउंटर चालू हैं, कर्मचारी तैनात हैं और टिकट बेचे जा रहे हैं। यह एक ऐसी व्यवस्था है, जहाँ ‘सेवा’ का ढिंढोरा पीटती है व्यवस्था… पर ट्रेन दिखती नहीं।

अब आइए बात करते हैं गोहद, सोनी और मालनपुर जैसे स्टेशनों की। ये स्टेशन न सिर्फ कार्यशील हैं बल्कि इनमें कई एक्सप्रेस ट्रेनें — जैसे भिंड-रतलाम इंटरसिटी और इटावा-कोटा एक्सप्रेस — रोज रुकती हैं। फिर भी यहाँ के यात्री सिर्फ जनरल टिकट लेकर ही सफर करने को मजबूर हैं। रिजर्वेशन की सुविधा के लिए उन्हें दूसरे शहरों का रुख करना पड़ता है। क्या ये यात्रियों के साथ अन्याय नहीं है? जब ट्रेनें रुक रही हैं तो रिजर्वेशन काउंटर क्यों नहीं? — यह सवाल हर रोज़ इन इलाकों के यात्री खुद से पूछते हैं।

भिंड से सांसद संध्या राय ने इस मुद्दे पर आवाज़ उठाई है और कहा कि वह इस संदर्भ में रेल मंत्री को पत्र लिखेंगी। लेकिन ये आश्वासन कोई नया नहीं है। साल 2006 में भी राठ स्टेशन पर सांसद की मांग पर रिजर्वेशन काउंटर खोला गया था, लेकिन वहाँ न ट्रेनें शुरू हुईं, न ही यात्रियों को कोई लाभ मिला। सवाल यह है कि रेलवे की कार्यप्रणाली में ऐसी विसंगतियाँ कैसे बनी रहती हैं? क्या यह सिर्फ दिखावटी व्यवस्था है या फिर सरकारी धन और संसाधनों की खुली बर्बादी?

झांसी रेल मंडल के पीआरओ मनोज कुमार सिंह का कहना है कि “कुछ स्टेशनों पर जनरल टिकट ही मिलती हैं। यात्रियों की सुविधा के लिए आगामी कार्य योजना बनाई जाएगी।” लेकिन यह बयान भी बीते सालों में दिए गए अन्य खोखले वादों जैसा ही प्रतीत होता है। जब यात्रियों की रोज़ की समस्याओं को देखा जा रहा है, तो समाधान अब तक क्यों नहीं हुआ? क्या रेलवे सिर्फ जवाब देने में माहिर है, ज़मीनी सुधार करने में नहीं?

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