Friday, December 5, 2025

Waqf संशोधन अधिनियम पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले मौलाना का विवादित वीडियो वायरल

क्या किसी धार्मिक नेता की एक वीडियो क्लिप भारत के सबसे बड़े न्यायालय की गरिमा को चुनौती दे सकती है? क्या लोकतंत्र में अदालत के फैसले को न मानने की धमकी संविधान के खिलाफ नहीं मानी जाएगी? ये सवाल आज पूरे देश में गूंज रहे हैं। सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा एक वीडियो पूरे भारत को स्तब्ध कर रहा है। इस वीडियो में एक मौलाना सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले चेतावनी देते नजर आते हैं कि अगर न्यायालय का निर्णय उनके पक्ष में नहीं आता, तो वह देश को ठप कर देंगे। इस वीडियो को सबसे पहले पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी ने साझा किया है, और अब यह मामला न सिर्फ राजनीतिक और सामाजिक गलियारों में, बल्कि न्यायपालिका के गलियारों तक पहुँच चुका है।

इस वीडियो में खुद को उत्तर दिनाजपुर जिले के “ऑल इंडिया इमाम संघ” का जिला अध्यक्ष बताने वाला व्यक्ति वक्फ संशोधन अधिनियम को लेकर बेहद आक्रामक लहजे में बयान देता है। वह कहता है कि यदि सुप्रीम कोर्ट वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधनों को असंवैधानिक घोषित करता है तो वह शांत रहेगा। लेकिन यदि फैसला उनके खिलाफ आया, तो पूरे भारत को जाम कर देंगे—सड़कें, रेलवे, गलियां, सब ठप हो जाएंगी। यह कोई मामूली विरोध नहीं, बल्कि एक सुनियोजित अवरोध की धमकी है, जिसे मौलाना खुले मंच से दे रहे हैं। वह स्पष्ट कहते हैं कि “शहरों में नहीं, गांवों से शुरुआत करेंगे” और “रेल बंद करेंगे, बाइक-गाड़ियां सब रोकेंगे।”

इस बयान के सार्वजनिक होते ही शुभेंदु अधिकारी ने सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए पूछा—”क्या यह सुप्रीम कोर्ट को धमकी देने जैसा नहीं है?” उन्होंने लिखा कि अगर अदालत का फैसला इनके पक्ष में नहीं आया, तो क्या ये देश की न्यायिक व्यवस्था को ठप करने की योजना बना रहे हैं? यह बयान न सिर्फ लोकतंत्र की नींव पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि आम नागरिकों की स्वतंत्रता और देश की कानून व्यवस्था को भी चुनौती देता है। वहीं, विशेषज्ञ भी कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट को अब इस मामले को गंभीरता से लेते हुए स्वतः संज्ञान लेना चाहिए, क्योंकि यह न्यायपालिका की निष्पक्षता और अधिकारिता पर सीधा हमला है।

बात वक्फ अधिनियम की करें तो यह मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों की निगरानी, रखरखाव और प्रबंधन से जुड़ा एक अहम कानून है। हाल ही में इसमें हुए संशोधनों को लेकर कई मुस्लिम संगठनों ने आपत्ति जताई है, वहीं सरकार का पक्ष है कि इन संशोधनों का उद्देश्य पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना है। अब इस मामले की संवेदनशीलता इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई शुरू हो चुकी है। इस बीच मौलाना का यह बयान आग में घी डालने जैसा है, जो न सिर्फ लोगों की भावनाएं भड़काने वाला है बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालने की कोशिश भी माना जा सकता है।

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