Friday, December 5, 2025

Meta की बादशाही खतरे में! क्या बिक जाएंगे Instagram और WhatsApp?

कल्पना कीजिए कि एक दिन आपकी फेसबुक टाइमलाइन, इंस्टाग्राम रील्स और वॉट्सएप चैट अचानक गायब हो जाएं – न तो वो पुराने मैसेज मिलें, न पसंदीदा क्रिएटर की स्टोरीज़ दिखें। ऐसा डिजिटल ब्लैकआउट अगर संभव है, तो उसकी शुरुआत हो चुकी है – और मैदान बना है अमेरिका की अदालत में, जहां Meta और इसके फाउंडर मार्क जुकरबर्ग के खिलाफ इतिहास का सबसे बड़ा मुकदमा चल रहा है। आरोप है – सोशल मीडिया में एकाधिकार यानी मोनोपॉली और अपने वर्चस्व का गलत इस्तेमाल। ट्रायल 14 अप्रैल से शुरू हो चुका है, और इसका अंजाम 1.3 ट्रिलियन डॉलर की कंपनी के टुकड़े होने तक जा सकता है। सवाल ये है – क्या इंस्टाग्राम और वॉट्सएप वाकई बिक जाएंगे?

मेटा के खिलाफ 2020 में अमेरिकी फेडरल ट्रेड कमीशन (FTC) और 46 राज्यों ने मिलकर दो मुकदमे दायर किए। FTC ने कहा – मेटा ने प्रतिस्पर्धियों को या तो खरीद लिया या उन्हें बर्बाद कर दिया। उदाहरण के तौर पर, 2012 में इंस्टाग्राम और 2014 में वॉट्सएप की खरीद को FTC ने कॉम्पिटिशन खत्म करने की चाल बताया। मेटा पर Buy or Bury की रणनीति अपनाने, छोटे स्टार्टअप्स को कुचलने, और सोशल मीडिया डेटा के ज़रिए यूजर्स को अपनी मुट्ठी में रखने जैसे संगीन आरोप हैं। FTC का दावा है कि मेटा के कारण सोशल मीडिया में नए विकल्प बंद हो गए और डिजिटल स्पेस में एकाधिकार बना।

FTC ने कोर्ट में कई अंदरूनी दस्तावेज़ पेश किए – जिनमें मार्क जुकरबर्ग के 2012 के ईमेल भी हैं, जिनमें उन्होंने लिखा कि इंस्टाग्राम को खरीदना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि वह फेसबुक के लिए “खतरा” बन सकता है। FTC चाहती है कि कोर्ट मेटा को इंस्टाग्राम और वॉट्सएप अलग करने का आदेश दे। इसके अलावा, मेटा पर यह रोक लगाई जाए कि वह भविष्य में बिना इजाजत कोई कंपनी न खरीदे जो कॉम्पिटिशन को प्रभावित करे। साथ ही, FTC उन नीतियों को भी खत्म करना चाहती है जो स्टार्टअप डेवलपर्स और छोटे प्लेटफॉर्म्स के लिए ज़हरीली साबित होती हैं।

14 अप्रैल को कोर्ट में 7 घंटे की पूछताछ के दौरान जुकरबर्ग ने मेटा का बचाव किया। उन्होंने कहा कि इंस्टाग्राम और वॉट्सएप को खरीदने के बाद कंपनी ने उन्हें बेहतर बनाया, वैश्विक स्तर पर पहुंचाया और यूजर्स को मुफ्त सेवाएं दीं। उनका दावा है कि सोशल मीडिया मार्केट में TikTok, YouTube, Snapchat, iMessage जैसे कई बड़े खिलाड़ी हैं – ऐसे में एकाधिकार का आरोप सरासर गलत है। उन्होंने यह भी कहा कि मेटा के जरिए यूजर्स को सुरक्षा, सुविधा और प्रोडक्ट्स की जानकारी मिलती है। “हम बाजार को कंट्रोल नहीं करते – हम बाजार को इनोवेट करते हैं,” उनका यही तर्क अदालत में गूंजा।

इस मुकदमे का असर सिर्फ अमेरिका में नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में पड़ेगा – भारत जैसे देशों में भी जहां करोड़ों लोग मेटा के प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करते हैं। अगर कोर्ट मेटा को इंस्टाग्राम और वॉट्सएप से अलग करने का आदेश देती है, तो यूजर अनुभव, डेटा पॉलिसी और विज्ञापन संरचना में भारी बदलाव आ सकता है। क्या आने वाले समय में भारत में भी टेक दिग्गजों पर ऐसे मुकदमे होंगे? क्या यह डिजिटल वर्चस्व का अंत होगा या नई शुरुआत? ये सवाल आज हमारे लिए भी उतने ही ज़रूरी हैं जितने अमेरिका के लिए।

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