कल्पना कीजिए… एक ऐसा गांव, जहाँ हर खेत में सोलर पंप से सींची जा रही हरियाली हो, जहाँ हर किसान के पास बीज, बाजार और बैंक की सीधी पहुंच हो, और जहाँ सड़कों पर आवारा गायें नहीं, बल्कि स्वस्थ गोवंश हों जो देश को पोषण और समृद्धि दोनों दे रहे हों।
अब ये सिर्फ़ कल्पना नहीं, हकीकत बनने जा रही है।
मध्यप्रदेश सरकार की कैबिनेट ने एक ऐसे ऐतिहासिक मिशन को मंज़ूरी दी है जो प्रदेश की कृषि, पशुपालन और ग्रामीण जीवन के हर पहलू को छूएगा — और बदलेगा भी।
नाम है – ‘किसान कल्याण मिशन’।
इस मिशन की सबसे बड़ी घोषणा है – दूध संग्रहण का लक्ष्य 24 लाख लीटर से सीधा 50 लाख लीटर प्रतिदिन और फिर आगे बढ़ते हुए 2 करोड़ लीटर प्रतिदिन तक का रोडमैप।
यह कोई साधारण योजना नहीं, बल्कि केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह के सुझाव पर मोहन सरकार ने इसे ज़मीन पर उतारने का फैसला किया है।
अब सहकारी समितियों और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की मदद से 6,000 गांवों में रोज़ाना दूध खरीदी की जाएगी।
सिर्फ़ दूध ही नहीं, सड़कों से गायों को हटाकर उनके लिए ‘हेल्थ यूनिट’ बनाई जाएगी, ताकि बीमार, घायल गोवंश को समय पर इलाज मिल सके।
अब कोई मवेशी आवारा नहीं छोड़ा जाएगा – हर संस्था की जिम्मेदारी तय की जाएगी।
कैबिनेट में जो दूसरा बड़ा निर्णय हुआ है, वह है फसल बीमा कवरेज को 50% तक बढ़ाना।
मतलब अब किसानों को ज्यादा सुरक्षा, कम जोखिम।
इसके अलावा 15 लाख क्विंटल उच्च गुणवत्ता के बीज, 3 लाख किसानों को सोलर पंप, और 1000 एफपीओ का निर्माण इस मिशन का हिस्सा हैं।
5 लाख हेक्टेयर भूमि पर ड्रोन से कीटनाशक छिड़काव और 3.35 लाख हेक्टेयर में सिंचाई विस्तार — ये आंकड़े नहीं, बदलाव की तैयारी के संकेत हैं।
सरकार अब सिर्फ़ खेती पर नहीं, मछली पालन, जैविक खाद, कोल्ड चेन नेटवर्क पर भी फोकस कर रही है।
10,288 टन मछली उत्पादन, 1.47 लाख मछुआरों को क्रेडिट कार्ड, और हर फसल-मवेशी-मछली के लिए 100% बीज तैयार करने की आत्मनिर्भरता का संकल्प लिया गया है।
कैबिनेट ने यह भी तय किया कि मंडियों को डिजिटल किया जाएगा, जिससे किसान को सीधा, ताज़ा और न्यायपूर्ण मूल्य मिल सके।
अनुसंधान, वेल्यू चेन और परंपरागत खेती के संरक्षण पर भी बल दिया जा रहा है।
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने बैठक में साफ़ कहा — “अब हमें दूध, खेती और गोवंश के क्षेत्र में एक नया मॉडल तैयार करना है।”
उन्होंने पशुपालन मंत्री लखन पटेल को कहा कि राष्ट्रीय डेयरी बोर्ड से मिलकर इस दिशा में पुख्ता कदम उठाएं।
वह चाहते हैं कि अगले पांच साल में 2 करोड़ लीटर दूध प्रतिदिन का लक्ष्य सिर्फ़ आंकड़ा न रहे, बल्कि किसानों की आमदनी का ज़रिया बने।
इसके लिए हर विभाग, हर सामाजिक संगठन को ज़िम्मेदारी दी जाएगी ताकि योजना सिर्फ़ फाइलों में नहीं, धरातल पर दिखे।






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