8 अप्रैल से मध्यप्रदेश में आम आदमी की रसोई पर फिर एक और हमला होने जा रहा है। केंद्र सरकार ने घरेलू LPG सिलेंडर की कीमतों में ₹50 की बढ़ोतरी कर दी है। यह खबर 7 अप्रैल को केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दी। उन्होंने कहा कि यह फैसला तेल कंपनियों को हो रहे भारी घाटे को कम करने के लिए लिया गया है। उन्होंने दावा किया कि ऑयल मार्केटिंग कंपनियों को बीते समय में ₹41,000 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा, क्योंकि वे सिलेंडर की लागत से कम मूल्य वसूल रही थीं। लेकिन अब ये घाटा आम जनता की जेब से वसूला जाएगा।
भोपाल से लेकर मुरैना तक, LPG सिलेंडर के दामों में यह बढ़ोतरी अब प्रदेश के हर घर की थाली में असर डालेगी। नए रेट्स के मुताबिक भोपाल में अब सिलेंडर ₹858 में मिलेगा, जो पहले ₹808 का था।
इंदौर वालों को अब ₹881 चुकाने होंगे, ग्वालियर में यह दर ₹936 हो चुकी है, जबकि पहले यह ₹886 थी। जबलपुर में गैस ₹859 में और उज्जैन में ₹912 में बिकेगी।
लेकिन सबसे ज्यादा झटका भिंड और मुरैना जैसे सीमावर्ती जिलों को लगने वाला है, जहां गैस की कीमतें क्रमश: ₹936 और ₹937 हो चुकी हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां आय सीमित है, वहां यह बढ़ोतरी किसी आपदा से कम नहीं।
यह सवाल उठता है कि जब वेतन नहीं बढ़ रहे, रोज़गार नहीं बन रहे, और महंगाई चरम पर है — तो फिर यह भार जनता क्यों उठाए?
सरकार की योजनाएं जनता के हित में हों, न कि उनके खिलाफ। तेल कंपनियों को घाटा हुआ, ये बात अपनी जगह सही हो सकती है, परंतु उसका बोझ पहले से ही आर्थिक रूप से जूझ रही जनता पर क्यों डाला जाए? क्या कोई वैकल्पिक नीति नहीं बनाई जा सकती थी?
सरकार को इस फैसले की जवाबदेही तय करनी होगी — क्या इस बढ़ोतरी से वाकई घाटा कम होगा, या यह महंगाई की श्रृंखला में एक और कड़ी बन जाएगी? और सबसे महत्वपूर्ण – क्या सरकार ने गरीब, आदिवासी, और ग्रामीण समुदायों की सामाजिक परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए यह कदम उठाया?





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