इंदौर नगर निगम का बजट सत्र चल रहा था—हर कोई शहर की तरक्की, योजना, और आमजन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कर रहा था। मगर ठीक उसी समय कुछ ऐसा हुआ, जिसने एक अहम बहस को जन्म दे दिया। निगम परिसर के नवीन भवन में बिना पूर्व अनुमति नमाज पढ़ी गई। पहले तो ये खबर दबे स्वर में चली, लेकिन जब सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हुआ, तो प्रशासन से लेकर राजनीतिक गलियारों में हलचल मच गई।
बजट सत्र में तकरीबन 9 घंटे तक वार्ड पार्षदों और अधिकारियों के बीच विभिन्न मुद्दों पर गंभीर और सार्थक चर्चा हुई। लंच ब्रेक की औपचारिक घोषणा भी सभापति की ओर से कर दी गई थी। इसी दौरान नवीन भवन के एक कमरे में नमाज पढ़े जाने की जानकारी सामने आई। यह कृत्य चूंकि नगर निगम की इमारत के भीतर हुआ और इसके लिए कोई पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी, इसलिए सवाल उठना स्वाभाविक था—क्या सार्वजनिक संस्थानों में धार्मिक गतिविधियों की इजाजत बगैर प्रक्रिया के दी जा सकती है?
महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने इस घटनाक्रम पर नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा, “सभापति ने किसी प्रकार की अनुमति नहीं दी थी। मैंने स्वयं उनसे बात की। उन्होंने साफ़ कहा कि नमाज की अनुमति नहीं दी गई थी। अगर किसी को नमाज पढ़नी थी, तो वह परिसर के बाहर या किसी निर्धारित स्थान पर यह कर सकते थे।” उन्होंने कहा कि निगम जैसे संस्थान में किसी भी गतिविधि के लिए औपचारिक अनुमति और पारदर्शिता अनिवार्य है, ताकि किसी समुदाय विशेष के साथ पक्षपात का संदेश न जाए।
महापौर ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से इस संबंध में कोई व्हीप जारी नहीं किया गया था। उन्होंने दो टूक कहा कि “हमारे संस्थानों में धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान है, लेकिन यह स्वतंत्रता तब तक उचित है जब तक कि वह सार्वजनिक नीति, प्रक्रिया और सामूहिक भावना को ठेस न पहुंचाए।” ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या यह एक सोची-समझी सियासी चाल थी या एक सच्ची धार्मिक भावना का भावुक प्रदर्शन? दोनों ही सूरतों में, व्यवस्था की गंभीरता पर बहस होनी तय है।





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