Holi का पर्व इस बार विशेष महत्व रखता है, क्योंकि तिथियों और शुभ संयोगों के चलते लोगों के बीच उत्साह और जिज्ञासा का माहौल है। 2025 में होली का पर्व 15 मार्च को मनाया जाएगा, लेकिन इस बार कुछ विशेष तिथियों और नक्षत्रों के कारण होलिका दहन और रंगों का उत्सव अलग तरीके से मनाया जाएगा। 13 मार्च गुरुवार को फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा के दिन होलिका दहन होगा, जो कि मिथिला और बनारस पंचांग के अनुसार तय किया गया है। इस दिन भद्रा का समय भी है, जिससे होलिका दहन की तिथि को लेकर कुछ संशय की स्थिति बनी हुई है। 13 मार्च की रात 10:47 बजे भद्रा समाप्त हो जाएगा, उसके बाद उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में होलिका दहन किया जाएगा। इसके बाद 15 मार्च को रंगों का पर्व मनाया जाएगा, जो कि संपूर्ण भारत में धूमधाम से मनाया जाता है।
होलिका दहन और पूजा विधि: क्या है खास?
होलिका दहन के दिन पूजा में अक्षत, गंगाजल, रोली-चंदन, मौली, हल्दी, दीपक, मिष्ठान आदि का प्रयोग किया जाता है। इस दिन गुड़, कर्पूर, तिल, धूप, जौ, घी, आम की लकड़ी और गाय के गोबर से बने उपले (गोइठा) डाले जाते हैं। सात बार परिक्रमा करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है, साथ ही यह पूजा नकारात्मकता का नाश करने, रोग और शोक से मुक्ति, और मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए की जाती है। होलिका की अग्नि में सभी दुःख, कष्ट, रोग और दोष जलकर समाप्त हो जाते हैं, और उस अग्नि से उत्पन्न भस्म को पवित्र माना जाता है। इस भस्म का टीका लगाने से सुख, समृद्धि और आयु में वृद्धि होती है।
होलिका दहन के साथ बारीक तिथियाँ और शुभ संयोग
इस बार होलिका दहन के दिन खासतौर पर राशियों के हिसाब से आहुति देने की परंपरा भी रखी जाएगी। मेष, वृश्चिक, सिंह और वृष राशि वाले गुड़ की आहुति देंगे, मिथुन, तुला और कन्या राशि वाले कर्पूर की आहुति देंगे, जबकि कर्क, धनु, मीन, मकर और कुंभ राशि वाले जौ, चने, तिल आदि की आहुति देंगे। इस तरह, प्रत्येक राशि के लोग अपने अनुसार होलिका में आहुति अर्पित करेंगे। साथ ही, होली 2025 में 15 मार्च को दो शुभ नक्षत्रों का युग्म संयोग रहेगा—उत्तराफाल्गुनी और हस्त नक्षत्र, जो कि दिनभर बने रहेंगे। इसके बाद दोपहर 12:55 बजे से वृद्धि योग का आरंभ होगा, जो इस दिन को और भी विशेष बना देता है।
रंगोत्सव और शुभ रंगों का महत्व
Holi के दिन रंगों का खेल भी विशेष होता है। शास्त्रों के अनुसार, लाल, पीला और गुलाबी रंग का प्रयोग शुभ माना जाता है। इन रंगों का उपयोग करने से द्वेष और बैर की भावनाएँ समाप्त हो जाती हैं और समाज में प्रेम और सौहार्द्र का वातावरण बनता है। इस दिन के जरिए लोग एक-दूसरे से रिश्तों को नया आकार देते हैं और पुराने मतभेदों को भुलाकर एकजुट होते हैं।
इस बार होली का पर्व न केवल रंगों के उल्लास से भरा होगा, बल्कि तिथियों और शुभ संयोगों के चलते इसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व और भी बढ़ जाएगा। यह पर्व खुशियाँ लेकर आए और हम सभी को एक नई दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा दे।





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