Friday, December 5, 2025

कौन थे अयोध्या श्री राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास जी, 13 वर्ष की उम्र में ही त्यागा था घर परिवार by TKN Prime News

अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास का निधन 80 वर्ष की उम्र में लखनऊ के संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (PGI) में हुआ। 3 फरवरी 2024 को ब्रेन हेमरेज के बाद उन्हें लखनऊ रेफर किया गया था, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन केवल एक पुजारी की कहानी नहीं, बल्कि भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण कालखंड का जीवंत दस्तावेज था।

इस लेख में, हम उनके जीवन, योगदान और राम जन्मभूमि आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को विस्तार से समझेंगे।


आचार्य सत्येंद्र दास का प्रारंभिक जीवन

आचार्य सत्येंद्र दास (Acharya Satyendra Das) का जन्म उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के संत कबीर नगर (Sant Kabir Nagar) जिले में हुआ था। उनका बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति की ओर झुकाव था और वे भगवान श्रीराम के प्रति विशेष भक्ति रखते थे।

संन्यास और अयोध्या आगमन

उनके आध्यात्मिक गुरु अभिराम दास (Abhiram Das) थे, जिनसे प्रेरित होकर उन्होंने बहुत कम उम्र में ही संन्यास ले लिया और अयोध्या (Ayodhya) आ गए। उनके पिता भी इस निर्णय से प्रसन्न थे और स्वयं उन्हें छोड़ने आए थे।


अयोध्या और राम जन्मभूमि आंदोलन

राम जन्मभूमि का ऐतिहासिक संदर्भ

राम जन्मभूमि (Ram Janmabhoomi), अयोध्या में स्थित वह स्थान है, जिसे भगवान राम (Lord Rama) का जन्मस्थल (Birthplace) माना जाता है। इस स्थान पर एक विवादित ढांचा था, जिसे 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों द्वारा गिरा दिया गया। यह विवाद 16वीं शताब्दी से चला आ रहा था और इसे लेकर भारत की राजनीति में बड़े बदलाव आए।

राम जन्मभूमि आंदोलन में भूमिका

आचार्य सत्येंद्र दास 1992 में राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। जब बाबरी विध्वंस हुआ, तब वे रामलला की मूर्ति के पास खड़े होकर उसकी रक्षा कर रहे थे। उन्होंने इस पवित्र मूर्ति को अपनी गोद में उठा लिया था ताकि उसे किसी प्रकार की क्षति न पहुंचे।


मुख्य पुजारी के रूप में सेवा

आचार्य सत्येंद्र दास ने 1 मार्च 1992 को श्री राम जन्मभूमि के मुख्य अर्चक के रूप में अपनी सेवा देना शुरू किया। वे 32 वर्षों तक इस पद पर रहे और इस दौरान उन्होंने रामलला की नित्य सेवा व पूजा-अर्चना की।

रामलला की मूर्ति का रहस्य

एक महत्वपूर्ण घटना यह भी थी कि बाबरी विध्वंस (Babri Masjid Demolition) के बाद रामलला की मूर्ति (Ram Lalla Idol) अचानक गायब हो गई थी। यह वही मूर्ति थी, जिसे 22 दिसंबर 1949 की आधी रात को विवादित ढांचे में रखा गया था और जिसके आधार पर हिंदू पक्ष ने रामलला के प्रकट होने का दावा किया था।


वेतन और सुविधाएँ

शुरुआती वेतन

आचार्य सत्येंद्र दास को जब मुख्य पुजारी नियुक्त किया गया, तब उनका वेतन मात्र ₹1 प्रति माह था। यह सुनकर कई लोग चौंक सकते हैं, लेकिन यह इस तथ्य को दर्शाता है कि उन्होंने धन के लिए नहीं, बल्कि पूरी निष्ठा और श्रद्धा से यह सेवा ग्रहण की।

वेतन वृद्धि और सुविधाएँ

समय के साथ उनकी सैलरी बढ़ती गई। राम मंदिर ट्रस्ट (Ram Mandir Trust) ने सेवा की गुणवत्ता सुधारने के लिए पुजारियों (Hindu Priests in Ayodhya) और कर्मचारियों के वेतन में 10% की वृद्धि की थी। वर्तमान में, मुख्य पुजारी का मासिक वेतन ₹5,00,000 तक पहुँच चुका था।


आचार्य सत्येंद्र दास की शिक्षा और शिक्षण कार्य

संस्कृत विद्यालय और शिक्षण कार्य

आचार्य सत्येंद्र दास केवल एक पुजारी नहीं, बल्कि एक विद्वान भी थे। उन्होंने 1975 में अयोध्या के संस्कृत विद्यालय से आचार्य की डिग्री प्राप्त की और 1976 में संस्कृत डिग्री कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाना शुरू किया। उनका ज्ञान बहुत गहरा था, और उन्होंने कई विद्यार्थियों को वेद-पुराणों की शिक्षा दी।


उनका दर्शन और समाज में योगदान

आचार्य सत्येंद्र दास केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं थे। वे समाज सुधारक भी थे और उन्होंने विभिन्न धार्मिक और सामाजिक संगठनों के साथ मिलकर कार्य किया। उन्होंने विश्व हिंदू परिषद (Vishwa Hindu Parishad) और बजरंग दल (Bajrang Dal) जैसे संगठनों से भी मोर्चा लिया लेकिन अपनी सेवा कभी नहीं छोड़ी।

अध्यात्मिकता और सामाजिक सेवा

उन्होंने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं, बल्कि समाज सेवा का एक माध्यम होना चाहिए। वे गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता के लिए भी हमेशा तत्पर रहते थे।


उनके निधन के बाद संभावित परिवर्तन

राम मंदिर का अगला मुख्य पुजारी कौन?

आचार्य सत्येंद्र दास के निधन के बाद सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि अब रामलला के मंदिर का अगला मुख्य पुजारी कौन होगा? राम जन्मभूमि न्यास को अब एक नए योग्य संत को नियुक्त करना होगा।

संभावित बदलाव

  • पूजा-अर्चना की प्रक्रियाओं में कुछ बदलाव हो सकते हैं।
  • मंदिर प्रशासन के नियमों में संशोधन किया जा सकता है।
  • भविष्य में पुजारियों के वेतन और सुविधाओं में और वृद्धि हो सकती है।

आचार्य सत्येंद्र दास की विरासत

उनका योगदान अमर रहेगा

आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन केवल एक पुजारी के रूप में नहीं देखा जा सकता। वे राम जन्मभूमि आंदोलन के एक जीवंत साक्षी थे। उनका योगदान इतिहास में अमर रहेगा।

श्रद्धांजलि

उनके निधन से उनके अनुयायियों और राम भक्तों में गहरा शोक है। वे अपने कार्यों और समर्पण के कारण सदैव स्मरणीय रहेंगे।


आचार्य सत्येंद्र दास का जीवन भारतीय धर्म, संस्कृति और इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी रामलला की सेवा में समर्पित कर दी और अंतिम समय तक इस पवित्र कार्य को निभाते रहे। उनका योगदान राम मंदिर आंदोलन के साथ-साथ हिंदू समाज के लिए भी अमूल्य है।

अब, यह देखना होगा कि उनकी विरासत को कैसे आगे बढ़ाया जाता है और रामलला की पूजा के नए नियम किस प्रकार निर्धारित किए जाते हैं।


आपकी राय?

क्या आप इस ऐतिहासिक यात्रा के बारे में पहले से जानते थे? आचार्य सत्येंद्र दास के योगदान पर आपकी क्या राय है? हमें कमेंट में बताइए और हमारे चैनल को फॉलो करें।

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