महाराष्ट्र सरकार की महत्वाकांक्षी ‘लाडकी बहिन योजना’ से बीते कुछ महीनों में 5 लाख महिलाओं के नाम हटा दिए गए हैं, जिससे लाभार्थियों की कुल संख्या 2.46 करोड़ से घटकर 2.41 करोड़ रह गई है। इस निर्णय के बाद राज्यभर में चर्चा तेज हो गई है कि क्या इन महिलाओं से अब तक दी गई सहायता राशि वापस ली जाएगी? इस मामले पर राज्य की महिला एवं बाल विकास मंत्री अदिति तटकरे ने स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा कि सरकार की ऐसी कोई मंशा नहीं है और जिन महिलाओं को अपात्र घोषित किया गया है, उन्हें भविष्य में योजना का लाभ नहीं मिलेगा, लेकिन पहले से दी गई राशि की वसूली नहीं की जाएगी।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल जुलाई से दिसंबर के बीच इन 5 लाख महिलाओं को कुल 450 करोड़ रुपये की सहायता दी गई थी। महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अपात्र घोषित महिलाओं में से 1.5 लाख की उम्र 65 वर्ष से अधिक थी, जबकि 1.6 लाख महिलाएं पहले से ही ‘नमो शेतकरी योजना’ जैसी अन्य सरकारी योजनाओं का लाभ ले रही थीं। इसके अलावा, 2.3 लाख महिलाएं संजय गांधी निराधार योजना के तहत सहायता प्राप्त कर रही थीं, जिससे वे ‘लाडकी बहिन योजना’ की पात्रता खो बैठीं। इस योजना को महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण के लिए शुरू किया गया था, लेकिन अब विपक्ष इस मुद्दे को लेकर सरकार पर निशाना साध रहा है।
महाराष्ट्र में भाजपा, शिवसेना और एनसीपी के गठबंधन ‘महायुति’ ने विधानसभा चुनावों में शानदार जीत दर्ज की थी, जिसमें ‘लाडकी बहिन योजना’ का बड़ा योगदान माना जाता है। इस योजना के तहत 2.5 लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाली 21 से 65 वर्ष की महिलाओं को हर महीने 1500 रुपये की वित्तीय सहायता दी जाती है। हालांकि, सरकार ने अपात्र लाभार्थियों को योजना से हटाने का फैसला किया, जिससे विपक्ष को हमलावर होने का मौका मिल गया है। चुनाव प्रचार के दौरान महायुति नेताओं ने योजना की सहायता राशि बढ़ाकर 2100 रुपये प्रति माह करने का वादा किया था, लेकिन अब इस योजना में कटौती को लेकर राजनीतिक बहस छिड़ गई है। क्या सरकार अपने वादे को पूरा करेगी, या फिर यह योजना चुनावी वादा मात्र थी? इस पर सभी की नजरें टिकी हैं।






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