Friday, December 12, 2025

पटौदी खानदान की संपत्ति पर केंद्र सरकार का दावा, भोपाल के नवाबों का गौरवशाली इतिहास

भोपाल रियासत के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह खान की बड़ी बेटी, आबिदा सुल्तान, न सिर्फ एक राजकुमारी थीं, बल्कि वह उस दौर की नायाब हस्ती थीं, जब महिलाएं घर की चारदीवारी से बाहर निकलने में भी हिचकिचाती थीं। आबिदा प्लेन उड़ाने में माहिर थीं, शिकार करना उनका शौक था, और राजनीतिक मसलों को सुलझाने में उनका कोई सानी नहीं था। हाल ही में अभिनेता सैफ अली खान के पुश्तैनी संपत्ति से जुड़ी एक बड़ी खबर ने लोगों का ध्यान खींचा। खबर है कि भोपाल में मौजूद पटौदी परिवार की संपत्तियां, जिनकी अनुमानित कीमत करीब 15,000 करोड़ रुपये है, अब केंद्र सरकार के नियंत्रण में आ सकती हैं। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने इन संपत्तियों पर लगे स्थगन आदेश को हटा दिया है, जिससे शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 के तहत इनका अधिग्रहण संभव हो गया है।

पटौदी खानदान और भोपाल रियासत का रिश्ता ऐतिहासिक है। 1947 से पहले भोपाल एक रियासत थी, जिसके अंतिम नवाब हमीदुल्लाह खान थे। उनकी तीन बेटियों में से सबसे बड़ी, आबिदा सुल्तान, 1950 में पाकिस्तान चली गईं। उनकी दूसरी बेटी, साजिदा सुल्तान, भारत में रहीं और सैफ अली खान के दादा नवाब इफ्तिखार अली खान पटौदी से विवाह किया। 2019 में अदालत ने साजिदा सुल्तान को कानूनी उत्तराधिकारी मानते हुए उनकी संपत्तियों को वैध रूप से उनके परिवार को सौंप दिया था। हालांकि, आबिदा सुल्तान के पाकिस्तान जाने के कारण उनकी संपत्तियां शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत केंद्र सरकार के दावे का हिस्सा बन गईं।

आबिदा सुल्तान का व्यक्तित्व सिर्फ एक राजकुमारी तक सीमित नहीं था। उनके बारे में बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की आजादी और विभाजन के छह महीने बाद उन्होंने पाकिस्तान जाने का फैसला किया। बताया जाता है कि उन्होंने एक फोन कॉल के जरिए कायदे आजम जिन्ना से कहा था, “मैं सिंहासन पर बैठने के बजाय पाकिस्तान आना चाहती हूं।” इस पर जिन्ना ने खुशी जाहिर करते हुए कहा था, “अब हमारे पास श्रीमती पंडित का मुकाबला करने के लिए कोई तो होगा।” (श्रीमती पंडित, नेहरू जी की बहन थीं और उस समय संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही थीं)। आबिदा अपने फैसले के साथ पाकिस्तान चली गईं, अपने साथ केवल दो सूटकेस लेकर।

भोपाल की शाही विरासत और पटौदी परिवार की संपत्तियों से जुड़े इस विवाद ने एक बार फिर से इतिहास के उन पन्नों को खोल दिया है, जो नवाबी दौर के गौरवशाली दिनों की गवाही देते हैं। आबिदा सुल्तान का संघर्ष, उनकी सोच, और उनके फैसले आज भी एक प्रेरणा हैं, जो दिखाते हैं कि किसी भी शख्सियत की पहचान उसके साहस और विचारों से होती है, न कि उसकी उपाधियों और संपत्तियों से।

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