अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में वापसी के साथ ही एक बड़ा फैसला लेते हुए जन्म से नागरिकता (Birthright Citizenship) को खत्म करने की घोषणा की है। यह कार्यकारी आदेश न केवल अमेरिका के भीतर संवैधानिक बहस छेड़ेगा, बल्कि इसका असर दुनियाभर में महसूस किया जाएगा। 14वें संशोधन के तहत जन्म से नागरिकता का प्रावधान 1868 से लागू है, जो गृहयुद्ध के बाद गुलामों को बराबरी देने के उद्देश्य से बनाया गया था। ट्रंप के इस आदेश ने सोशल मीडिया पर तूफान मचा दिया है और यह अदालतों में चुनौती का सामना कर सकता है। इस बदलाव से अमेरिका में रहने वाले 54 लाख भारतीय-अमेरिकी नागरिकों पर क्या असर पड़ेगा, यह सवाल अब चर्चा का केंद्र बन गया है।
अमेरिकी संविधान का 14वां संशोधन, जो धरती पर जन्म लेने वाले हर बच्चे को नागरिकता की गारंटी देता है, 19वीं सदी में गुलामी के अंत के बाद सामाजिक समानता सुनिश्चित करने के लिए लाया गया था। वोंग किम आर्क मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इसे “प्राचीन और मौलिक अधिकार” करार दिया था। लेकिन ट्रंप के नए आदेश के तहत यह प्रावधान अब बदल जाएगा। इस आदेश के अनुसार, अमेरिका में जन्मे बच्चे को तभी नागरिकता मिलेगी, जब उसके माता-पिता में से कम से कम एक अमेरिकी नागरिक, ग्रीन कार्ड धारक, या अमेरिकी सेना में सेवा करने वाला हो। यह आदेश 30 दिनों में लागू होगा, लेकिन पहले से नागरिकता प्राप्त लोगों को इससे बाहर रखा गया है।
अमेरिका में रहने वाले भारतीय समुदाय, जो 54 लाख की संख्या के साथ वहां की आबादी का 1.47% हिस्सा हैं, इस फैसले से सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। खासतौर पर वे भारतीय, जो वर्क वीजा पर अमेरिका में रह रहे हैं, अब अपने बच्चों को अमेरिकी नागरिकता नहीं दिला पाएंगे। इससे हर साल हजारों भारतीय परिवारों की योजनाएं प्रभावित होंगी। साथ ही, ग्रीन कार्ड प्रक्रिया में और देरी हो सकती है, जिससे 10 लाख से ज्यादा भारतीय, जो पहले से लंबा इंतजार कर रहे हैं, और ज्यादा असमंजस में पड़ सकते हैं। ट्रंप का यह आदेश भारतीय-अमेरिकियों के लिए चुनौतियां लेकर आया है, जिससे उनके भविष्य पर अनिश्चितता के बादल मंडराने लगे हैं।






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