महाकुंभ 2025 का शुभारंभ हुए एक हफ्ता हो चुका है, और संगम तट पर कल्पवास कर रहे श्रद्धालुओं के चेहरों पर गजब की श्रद्धा और उत्साह झलक रहा है। संगम की पावन धरती पर आस्था का जो विशाल मेला सजा है, उसकी भव्यता देखने लायक है। यही महाकुंभ, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा मेला कहा जाता है, हर बार नई ऊंचाइयों को छूता है। लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं का यहां उमड़ना, इसे भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का प्रतीक बनाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि आजादी के बाद के पहले कुंभ की तैयारियां कैसी थीं? नेहरू युग के उस दौर में सरकार ने इसे सफल बनाने के लिए क्या कदम उठाए थे?
आजादी के सात साल बाद, 1954 में, पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निर्देश पर कुंभ के लिए अभूतपूर्व इंतजाम किए गए। विशेष रूप से रेलवे ने मेले को सफल बनाने के लिए युद्धस्तर पर तैयारियां की थीं। इलाहाबाद जो उस समय उत्तर रेलवे का हिस्सा था, ने पांच मंडलों को मिलाकर विशेष शटल ट्रेनों का संचालन किया। संगम के निकट अस्थायी रेलवे स्टेशन बनाया गया, और प्लेटफॉर्म्स पर भीड़ नियंत्रण के लिए नई व्यवस्थाएं लागू की गईं। ट्रेनों को ‘K’ कैरेक्टर दिया गया ताकि उन्हें आसानी से पहचाना जा सके। 200 से अधिक टिकट कलेक्टर और 138 पैसेंजर गाइडों की नियुक्ति की गई, ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो। यही नहीं, वीएचएफ वायरलेस तकनीक का पहली बार इस्तेमाल हुआ, जिससे मेले का संचालन और ट्रैफिक नियंत्रण बेहतर हुआ।
1954 के कुंभ की तैयारियां अपने आप में एक मिसाल थीं, जहां रेलवे और प्रशासन ने 50 लाख श्रद्धालुओं की भीड़ को संभालने के लिए ऐतिहासिक कदम उठाए। रेलवे रिकॉर्ड आज भी इलाहाबाद अभिलेखागार में संरक्षित हैं, जो बताते हैं कि कैसे हर स्टेशन से लेकर ट्रेनों के शेड्यूल तक, सबकुछ बेहद योजनाबद्ध तरीके से किया गया। रामबाग, नैनी, प्रयाग घाट जैसे प्रमुख स्टेशनों पर यात्री गाइड और वरिष्ठ अधिकारियों की तैनाती की गई। कुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की संगठनात्मक क्षमता और सांस्कृतिक समृद्धि का जीता-जागता उदाहरण है। आज के महाकुंभ में वही व्यवस्थाएं और परंपराएं नए आयाम छू रही हैं, जो अतीत में स्थापित की गई थीं। महाकुंभ 2025 भी अपने समय की नई इबारत लिखने के लिए तैयार है।






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