पहली नजर में अक्सर लोग यह मान लेते हैं कि जहां एक बार बिजली गिर चुकी होती है, वहां दोबारा बिजली नहीं गिरती। यह धारणा कई वर्षों से मिथक के रूप में चली आ रही है, लेकिन वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर यह पूरी तरह गलत है। बिजली गिरने की प्रक्रिया में बिजली बादलों और धरती के बीच चार्ज के असंतुलन को दूर करती है। जब वातावरण में फिर से चार्ज का असंतुलन पैदा होता है, तो बिजली उसी स्थान पर दोबारा गिर सकती है। कई शोध और आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि एक ही स्थान पर बार-बार बिजली गिरने की घटनाएं देखी गई हैं। इसलिए इस धारणा को तथ्य मान लेना लोगों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
बिजली गिरने का यह मिथक न केवल सामान्य लोगों को गुमराह करता है, बल्कि कई बार सुरक्षा नियमों की अनदेखी का कारण भी बनता है। बिजली गिरने के दौरान उचित सुरक्षा उपायों को अपनाना अनिवार्य है, चाहे वह स्थान पहले से बिजली गिरने का गवाह रहा हो या नहीं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, ऊंची इमारतें, पेड़, और धातु की वस्तुएं बिजली को आकर्षित करती हैं। इसलिए सुरक्षित स्थान पर शरण लेना, घर में रहना, और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से दूरी बनाना जरूरी होता है। इसके अतिरिक्त, कई स्थानों पर बिजली गिरने से बचाने के लिए तड़ित चालक (लाइटनिंग रॉड) लगाए जाते हैं, जो बिजली के असर को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।
इसलिए, यह समझना बेहद महत्वपूर्ण है कि बिजली गिरने का कोई पूर्वानुमान नहीं होता कि वह किस स्थान पर गिरेगी या कितनी बार गिरेगी। आधुनिक तकनीकी साधनों और चेतावनी प्रणालियों के जरिए बिजली गिरने के संभावित खतरों के बारे में लोगों को सूचित किया जाता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि जहां बिजली गिरी हो, वहां पुनः नहीं गिरेगी। सही जानकारी और सतर्कता ही सुरक्षा की कुंजी है। अतः इस मिथक पर विश्वास करने की बजाय वैज्ञानिक तथ्यों को समझना और सुरक्षित रहना आवश्यक है।






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