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BHAGVAT KATHA VYAKHAN भक्त और भगवान

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BHAGVAT KATHA VYAKHAN भक्त और भगवान

श्री कृष्ण भगवान अश्वत्थामा को निराश देख कर बोले- सभी यादव तुम्हारा सम्मान करते हैं। फिर तुम सुदर्शन चक्र क्यों चाहते हो। कपिध्वज अर्जुन मेरा प्रिय है। उसने युद्ध में भगवान शंकर को संतुष्ट किया है। देवता और मनुष्य सभी अर्जुन का सम्मान करते हैं। कोई भी महारथी मुझे अर्जुन के समान प्रिय नहीं है। अर्जुन ने कभी मुझसे मेरा सुदर्शन चक्र नहीं मांगा। इसके अतिरिक्त बलराम जी और मेरे छोटे भाई गद तथा मेरे पुत्र प्रद्युम्न ने कभी इस चक्र को नहीं मांगा। साम्ब आदि यदुवंशी कुमार कभी भी सुदर्शन चक्र नहीं मांगे। तब तुमने इसे क्यों मांगा। तुम तो भरत वंश के आचार्य द्रोण के पुत्र हो। तुम इससे किसे मारना चाहते हो। तब अभिमानी अश्वत्थामा बोला- आप मेरा यह मार्मिक वचन सुनें। मैं आपकी पूजा करके आपके साथ युद्ध करना चाहता हूं। यह सुदर्शन चक्र पाकर मैं रण में अजेय बन जाऊं, यही मेरी इच्छा है। यह अद्भुत प्रभावशाली अस्त्र है। देवता दानव रण क्षेत्र में इसका प्रभाव देख चुके हैं। इस चक्र को आपके सिवा कोई अन्य धारण नहीं कर सकता। श्री कृष्ण भगवान कहते हैं कि अश्वत्थामा का चित्त चंचल है। वह क्रूर क्रोधी और काल के समान भयंकर है। वह दू:सह ब्रह्मशिर नामक ब्रह्मास्त्र जानता है। इसलिए आप लोग भीम की सुरक्षा कीजिए। यह कहकर श्री कृष्ण भगवान सभी पांडवों को रथ पर चढ़ा कर स्वयं रथ हांकने लगे। सभी पांडव अश्वत्थामा का पीछा करने लगे। पांडवों को अपनी ओर आते देख कर अश्वत्थामा अत्यंत भयभीत हो गया। उसने पांडवों के ऊपर दु:सह ब्रह्मास्त्र चला दिया। अग्नि मंत्र से अभिमंत्रित ब्रह्मास्त्र से आकाश में प्रलय कालीन अग्नि के समान ज्वाला प्रकट हो गई। यह देखकर श्री कृष्ण भगवान अर्जुन से बोले- अर्जुन-अर्जुन, तुरंत ब्रह्मास्त्र चलाओ और पांडवों के प्राण बचाओ। उनका यह वचन सुनकर अर्जुन अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र को शांत करने के लिए अपना ब्रह्मास्त्र से चला दिये। अर्जुन ने मन में यह संकल्प लेकर ब्रह्मास्त्र चलाया कि सबका कल्याण हो और अश्वत्थामा का ब्रह्मास्त्र शान्त हो जाए। उस ब्रह्मास्त्र से प्रलय कालीन भीषण अग्नि की ज्वाला निकलने लगी। आकाश में दोनों ब्रह्मास्त्रों की भीषण गर्जना सुनाई देने लगी। पृथ्वी डोलने लगी और जगत के सभी प्राणी व्याकुल होने लगे। यह भयंकर दृश्य देखकर उन्हें शांत करने के लिए महर्षि व्यास जी और देवर्षि नारद जी उनके बीच में आकर खड़े हो गए। महर्षि व्यास जी उन दोनों महारथियों से बोले कि इससे पहले जो महारथी इस अस्त्र को जानते थे, उन्होंने इसका प्रयोग मनुष्यों पर कभी नहीं किया। तुम दोनों आज किस कारण से दुस्साहस करके इसका प्रयोग किया है। यह दुर्जय ब्रह्मास्त्र संपूर्ण जगत का नाश कर देता है। इसका प्रयोग होने पर समस्त लोकों में त्राहि-त्राहि मच जाती है।
*अंतर्यामी सच्चिदानंद मुकुंद परमात्मा गोविंद श्री कृष्ण भगवान की जय। विजय नारायण गुरु जी वाराणसी।

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