Health : ’‘खानें के मीनू में मोटा अनाज शामिल करें’’ कम करे बीमारियों का खतरा

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भारत एक कृषि प्रधान देश है जहां 80% से ज्यादा आबादी गांवों में निवास करती हैं। आज से पांच दशक पूर्व जब सिंचाई की सुविधा अपर्याप्त थी, तब गेहूं व धान की फसल किसान नहीं लगाते थे बल्कि असिंचित खेतों में ज्वार, मक्का, बाजरा , कोदौ, जौ, मटरा, आदि मोटे अनाज की फसल बहुतायत में होती थी। मोटा अनाज के उत्पादन में ज्यादा पानी, खाद व कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं होती। साथ ही यह हमारे खेतों को उपजाऊ बनाने में मदद करता हैं। देश में वर्ष 1968 में “हरित क्रांति” की शुरुआत होने से अधिक उपज देने वाले बीज की किस्मो , ट्रैक्टर का कृषि में उपयोग, सिंचाई सुविधाओं (बोरवेल, नहर, कुआं) , कीटनाशकों व खाद के उपयोग से कृषि एक औद्योगिक प्रणाली में परिवर्तित हो गयी। जिसके कारण अनाज गेहूं और धान की पैदावार बढ़ी व धीरे-धीरे मोटे अनाज का उत्पादन एकाएक कम हो गया। असिंचित खेतों में पैदा होने वाले अनाज को मोटा अनाज (मिलेट्स) कहा जाता हैं। आर्थिक रूप से संपन्न लोग व व्यवसायी इन अनाजों को अपने उपयोग में नहीं लेते बल्कि खेत में कार्य करने वाले मजदूरों को उनके मजदूरी के रूप में दिया जाता था। संपन्न लोग गेहूं, चावल, व दाल, का उपयोग अपने लिए करते थे। जो मजदूर देशी मटर ( खेसारी ) का उपयोग रोटी, दलिया व दाल, के रूप में पूरी तरह से उपयोग में लाते थे, उन्हें लेथीरिज्म नाम की विकलांगता वाली बीमारी हो जाती थी। कई गांव में पूरी बस्ती के लोग इस बीमारी से पीड़ित हो जाते थे। हमें खुशी है कि इस पीढ़ी में खाने के तरीके में बदलाव के कारण यह पीड़ादायक बीमारी लुप्त हो गई। अब यही देशी मटर शान का प्रतीक बन गया है क्योंकि इसका इस्तेमाल चौपाटी व बाजारों में चाट-फुलकी में बहुतायत में हो रहा हैं।
अब हमें मोटे व पतले अनाज में पोषक तत्वों के आधार पर अंतर समझना चाहिये। पतले अनाज में मुख्य रूप से गेहूं और चावल हैं। देश में सिंचाई के रकबे में विस्तार होने के कारण पतले अनाज की पैदावार कई गुना बढ़ी है और इससे हमारे रहन-सहन, जीवन स्तर व खाने-पीने में उल्लेखनीय गुणवत्तापूर्ण वृद्धि हुई है। गेहूं व चावल का उपयोग हम अपने दैनिक जीवन में रोटी, दलिया, चावल, पुलाव, खिचड़ी, इडली, डोसा, उपमा, खीर, के रूप में करते हैं। गेहूं में ग्लूटेन प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट बहुतायत में होता है, जबकि प्रोटीन, फैट, फाइबर, विभिन्न विटामिन्स व मिनरल्स की कमी होती है। यही कारण है कि इनके सेवन से डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, मोटापा, कोलेस्ट्रॉल तथा ट्राईग्लिसराइड, व हृदय रोग की संभावना ज्यादा होती हैं।
21वीं सदी में जहां एक ओर हम एक-एक कर संक्रामक रोगों पर विजय प्राप्त कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर खान-पान की आदतों व अपनी दिनचर्या में बदलाव के कारण असंचारी बीमारी जैसे ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, हृदय रोग, लकवा, व विभिन्न अंगों के कैंसर बढ़ रहे हैं। भारत शासन ने इन बीमारियों के नियंत्रण हेतु स्वास्थ्य विभाग के अंतर्गत एन.सी.डी. कार्यक्रम शुरू किया गया है। जिसका एक महत्वपूर्ण घटक है- खाने-पीने के तौर तरीके में बदलाव। मोटा अनाज (मिलेट्स) इन बीमारियों के नियंत्रण में वरदान साबित होगा। मोटा अनाज में ज्वार, सांवा, बाजरा, रागी, कंगनी, जौ, चना, चीना, कोदो, कुटकी, बैरी, झंगोरा, कलमी, किनुआ, कुर्थी, रामदाना, आदि प्रमुख अन्नो को शामिल किया गया है। अभी तक मोटा अनाज को “गरीबों का खाद्यान्न” कहा जाता है।
डॉ. बी. एल. मिश्रा चिकित्सा विशेषज्ञ द्वारा बताया गया कि दुनिया में मोटा अनाज को निर्यात करने में भारत का बड़ा योगदान है। जिसके कारण देश को बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा प्राप्त होती हैं। मोटा अनाज में दो तरह के दाने- मोटा दाना व छोटा दाना होते हैं। विभिन्न मिलेट्स में अलग-अलग प्रकार के उच्च श्रेणी के पोषक तत्व अति महत्वपूर्ण गुण जैसे कम कैलोरी, हाई फाइबर, फोलिक एसिड, थायमिन, राइबोफ्लेविन, बी कैरोटीन, आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, एमीनो एसिड, मैंगनीज, जिंक व फास्फोरस उपस्थित होते हैं। विभिन्न व्यंजन के रूप में हम मोटे अनाज से सुबह का नाश्ता, दोपहर का भोजन व रात्रि का भोजन के रूप में प्रयोग में लेते हैं। हम इनसे रोटी, दलिया, इडली, डोसा, मिठाइयां, लड्डू, सूप, पुलाव, उपमा, केक, बिस्किट, नमकीन व हलुआ आदि व्यंजन बना सकते हैं। मौसम के अनुसार व्यंजन को स्वादिष्ट बनाने हेतु दाल, घी-तेल, दूध_दही, नमक, गुढ़, शक्कर व मसाले का उपयोग कर सकते हैं। मिलेट्स हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। कब्ज दूर करना, पेट फूलने में राहत, किडनी व लीवर को क्रियाशील बनाने में सहयोग, कैंसर कोशिकाओं से लड़ाई लड़ना, पाचन शक्ति बढ़ाने के साथ कई पुरानी व गंभीर बीमारियों जैसे डायबिटीज, ब्लडप्रेशर, कोलेस्ट्रॉल व ट्राइग्लिसराइड पर नियंत्रण, मोटापा, हृदय रोग व गठिया बात को नियंत्रित करने में लाभदायक हैं। जो लोग किडनी की बीमारी व पथरी, गठिया बात (यूरिक एसिड बढ़ने के कारण) व हाइपोथाइरॉइड की समस्याओं से पीड़ित हैं उन्हें चिकित्सकीय परामर्श उपरांत मोटा अनाज उपयोग में लेना चाहिये।
आइये हम सब मिलकर अपने दैनिक जीवन में अपनें भोजन में मोटे अनाज का उपयोग करें व अपनें परिवार को गंभीर बीमारी होने से बचायें। भारत शासन व मप्र सरकार से अपील है कि किसानों को मोटा अनाज उत्पादन हेतु पर्याप्त आर्थिक सहयोग दें ताकि हमारा अन्नदाता मजबूत हो व हमारे देश में गंभीर बीमारियां तथा बीमारियों से होने वाली जटिलताएं काम हो सकें।
: (डॉ. बी. एल. मिश्रा)

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