ग्राम बरहुला (सींगो टोला) में तिवारी परिवार नारायण दत्त तिवारी (सचिव) के यहां चल रही भक्ति पुण्यदायिनी दिव्य श्रीमद् भागवत महापुराण सरस अमृतमयी कथा में कथावक्ता पूज्य गुरुदेव भगवान डॉ० विशुद्धानंद जी महाराज रुद्रावर्त प्रयाग ने कहा कि-शब्द ब्रह्म स्वरूपा ज्ञान, भक्ति, वैराग्य और मोक्ष पुरुषार्थ चतुष्टय को प्राप्त करने वाली श्रीमद् भागवत कथाऽमृत श्रवण करने का सौभाग्य किसी बड़भागी को ही प्राप्त होता है। श्री गुरुदेव भगवान ने कहा कि बिना ज्ञान और वैराग्य के भक्ति नहीं आती। भगवान से संबंध स्थापित करने के लिये ज्ञान की आवश्यकता है। ज्ञान के चार प्रकार हैं- सामान्य, विशेष, विशेषतर और विशेष तम। सामान्य ज्ञान (आहार, निद्रा, भय, मैथुन) का ज्ञान पशु को भी है। इसके ज्ञान के लिये किसी विश्वविद्यालय जाने की जरुरत नहीं है। विशेषतर ज्ञान है कवि, आचार्य या राष्ट्रपति बन जाना। विशेषतम ज्ञान ये है कि हम भगवान के हैं, भगवान हमारे हैं और बाकी सारे सपने हैं। इस ज्ञान को ही विवेक कहते हैं। ज्ञान जब परिपक्व होता है तो विवेक कहलाता है। परिपक्व, जागृत ज्ञान विवेक कहलाता है और विवेक वो तेज तलवार है जो अज्ञान से होने वाले मोह और उससे पैदा होने वाले अहंकार को जड़ से काट देता है। विवेक बिना सत्संग के नहीं आता। जब कई जन्मों का पुण्य संचित होता है तो सत्संग मिलता है।
भाग्योदयेन बहुजन्म समार्जितेन सत्सङ्गमं च लभते पुरुषो यदा वै।अज्ञानहेतुकृतमोहमदान्धकारनाशं विधाय हि तदोदयते विवेकः ॥
बिना सत्संग के सुनी हुयी बातें जीवन में नहीं आयेंगी इसलिए भक्तों का संग करो और भौतिकवादियों का संग कम से कम करने का प्रयास करो।
बिनु सत्संग विवेक न होई, राम कृपा बिनु सुलभ न सोई। होइ विवेक मोह भ्रम भागा, तब रघुनाथ चरण अनुरागा।
सत्संग से विवेक, विवेक से वैराग्य, वैराग्य से भक्ति से परमात्म प्राप्ति। जिस तरह से जानवरों को पालतू बनाने के लिये हम बल और हथियारों का इस्तेमाल करते हैं वैसे ही मनुष्य को सही दिशा में मोड़ने का काम करती है सत्संग। सत्संग करने से हमें विवेक की प्राप्ति होती है। विवेक की प्राप्ति के बाद मोह और भ्रम भाग जाते हैं। जब मोह और भ्रम भाग जाते हैं तब हम भगवान से सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं। विवेक का अर्थ है परिपक्व ज्ञान। जैसे फुलौना (गुब्बारा) के फूट जाने पर बच्चा फूट-फूट कर रोता है पर बाप नहीं रोता क्योंकि बाप को ज्ञान है की बैलून का स्वभाव ही है फूटना। इस उदाहरण में फुलौना विषय है, बालक अज्ञानी और बाप विवेकी। हम मनुष्य भी इस संसार में रो रहे हैं क्योंकि हमें अपने स्वरुप का ज्ञान नहीं है। साधु नहीं रोते क्योंकि उन्हें अपने और इस संसार के स्वरुप का ज्ञान है। इसलिए संतों का सन्ग करो। कथा रस सरित में परिजनों सहित सैकड़ो की संख्या में क्षेत्रीय श्रद्धालु भक्तजनों ने गोता लगाया।
Rewa News: बिना सत्संग के सुनी हुयी बातें जीवन में नहीं आयेंगी इसलिए भक्तों का संग करो- डॉ० विशुद्धानंद महाराज
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