Thursday, October 31, 2024

छिंदवाड़ा से फिर खिलेंगे नाथ परिवार के परचम? नकुलनाथ ने लोकसभा चुनाव लड़ने का किया ऐलान

मध्य प्रदेश की सियासी हवा का रुख बदलने को तैयार है! आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है, खासकर छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र में. लंबे समय से ये सीट नाथ परिवार की राजनीतिक विरासत मानी जाती रही है. ऐसे में इस बार भी सभी की निगाहें इसी निर्वाचन क्षेत्र पर टिकी हुई हैं. लेकिन इस बार नाटक में एक दिलचस्प मोड़ आया है, जब सांसद नकुलनाथ ने खुद ऐलान कर दिया कि वो ही आगामी लोकसभा चुनाव में छिंदवाड़ा से चुनाव लड़ेंगे.

इस घोषणा से पहले कई अटकलें लगाई जा रही थीं कि इस बार पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ही चुनावी मैदान में उतरेंगे. लेकिन नकुलनाथ ने इन अटकलों पर विराम लगाते हुए साफ कर दिया कि छिंदवाड़ा उनका क्षेत्र है और वही यहां के मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करना चाहते हैं. उनके इस फैसले ने प्रदेश की सियासत में हलचल मचा दी है. आइए, इस पूरे घटनाक्रम और इसके संभावित परिणामों पर गहराई से नज़र डालते हैं.

नकुलनाथ का दावा: “मैं ही छिंदवाड़ा से लड़ूंगा, अफवाहों पर न दें ध्यान”

हाल ही में छिंदवाड़ा के परासिया में आयोजित एक कांग्रेस कार्यक्रम में सांसद नकुलनाथ ने कहा, “पिछले दिनों से खबरें आ रही हैं कि छिंदवाड़ा से लोकसभा चुनाव मेरे पिताजी कमलनाथ लड़ेंगे. लेकिन मैं आपको स्पष्ट कर दूं कि मैं ही यहां से चुनाव लड़ूंगा.” उन्होंने आगे कहा, “पिछले विधानसभा चुनाव में हिंदी भाषी राज्यों में सिर्फ छिंदवाड़ा ही एक ऐसा संसदीय क्षेत्र है जहां सभी सीटें कांग्रेस की हैं. मुझे कमलनाथ जी का पूरा सहयोग और मार्गदर्शन रहेगा. आपने हमेशा हमारे परिवार का साथ दिया है, इस बार भी आपका समर्थन चाहता हूं.”

नकुलनाथ के इस बयान से ये स्पष्ट हो गया है कि वो 2024 के चुनाव में आक्रामक रुख अपनाने को तैयार हैं. उन्होंने न सिर्फ खुद को चुनाव के लिए आगे बढ़ाया, बल्कि अटकलों पर भी विराम लगा दिया. हालांकि, उनके इस कदम के पीछे क्या रणनीति है, ये अभी पूरी तरह से साफ नहीं है.

कमलनाथ के कदम पीछे हटने के क्या हैं मायने?

शुरुआत में ये माना जा रहा था कि कमलनाथ ही चुनाव लड़ेंगे. ऐसे में उनका पीछे हटना कई सवाल खड़े कर रहा है. कुछ लोगों का मानना है कि उनके स्वास्थ्य कारणों को चुनाव न लड़ने का फैसला प्रभावित कर सकते हैं. वहीं, कुछ का कहना है कि वो नकुलनाथ के राजनीतिक भविष्य को मजबूत बनाने के लिए उन्हें आगे बढ़ा रहे हैं.

कमलनाथ के निर्णय के पीछे जो भी वजह हो, इससे नकुलनाथ को निश्चित रूप से फायदा मिलने वाला है. उनके पास पहले से ही संसदीय सीट का अनुभव है और स्थानीय जनता से उनका अच्छा जुड़ाव है. कमलनाथ का समर्थन उनके लिए और मजबूती देगा.

कांग्रेस के लिए रणनीतिक चाल?

नकुलनाथ के चुनाव लड़ने की घोषणा को कांग्रेस की एक रणनीतिक चाल भी माना जा रहा है. मध्य प्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद छिंदवाड़ा लोकसभा सीट उनके लिए उम्मीद की किरण के रूप में सामने आई है. नकुलनाथ को आगे बढ़ाकर और कमलनाथ के अनुभव का लाभ लेकर पार्टी इस सीट को बचाने की पूरी कोशिश करेगी.

बीजेपी के लिए बढ़ी चुनौती?

नकुलनाथ के चुनाव लड़ने की घोषणा से भाजपा के लिए भी चुनौती बढ़ गई है. 2019 के चुनाव में भाजपा के नत्थन शाह को नकुलनाथ से करीब 37,500 वोटों से हार का सामना करना पड़ा था. ऐसे में इस बार भी पार्टी मजबूत उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है. कुछ रिपोर्ट्स में ये भी कहा जा रहा है कि भाजपा किसी आदिवासी चेहरे को मैदान में उतार सकती है, क्योंकि छिंदवाड़ा में आदिवासी मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है.

क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?

छिंदवाड़ा लोकसभा सीट नाथ परिवार का गढ़ मानी जाती है. पिछले चार लोकसभा चुनावों में से तीन में जीत नाथ परिवार के खाते में ही गई है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नकुलनाथ इतिहास दोहरा पाएंगे और चुनाव जीतकर इस विरासत को आगे बढ़ा पाएंगे? इस सवाल का जवाब तो आने वाले चुनाव ही देंगे, लेकिन निश्चित रूप से ये चुनाव दिलचस्प होने वाला है.

चुनाव प्रचार का रंग कैसा होगा?

नकुलनाथ और भाजपा उम्मीदवार के बीच होने वाले चुनाव प्रचार में विकास, बेरोजगारी, किसानों की समस्याएं जैसे मुद्दे प्रमुख रहेंगे. साथ ही, दोनों दल एक-दूसरे पर निशाना साधने से भी नहीं चूकेंगे. सोशल मीडिया पर भी इस चुनाव को लेकर काफी चर्चा होने की उम्मीद है.

निष्कर्ष: छिंदवाड़ा चुनाव पर टिकी सबकी निगाहें

छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर होने वाला चुनाव सिर्फ स्थानीय स्तर पर ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसका असर पूरे मध्य प्रदेश की राजनीति पर भी पड़ सकता है. नकुलनाथ के चुनाव लड़ने की घोषणा ने इस चुनाव को और भी रोचक बना दिया है. अब देखना दिलचस्प होगा कि मतदाता आखिर किसको अपना समर्थन देते हैं और छिंदवाड़ा में नाथ परिवार का परचम एक बार फिर लहराता है या भाजपा इस गढ़ को फतह करने में सफल होती है.

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