मप्र में 118 सालों से चल रहे ग्वालियर व्यापार मेले में सिर्फ रोड टैक्स में छूट की परंपरा निभाने में सरकार को करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है। वर्ष 2022-23 में ग्वालियर मेले से 22 हजार 747 वाहनों की बिक्री हुई, जिससे 71 करोड़ 48 लाख रुपए का लाइफ टाइम टैक्स (रोड टैक्स) खजाने में आया। 50% की छूट वाली परंपरा नहीं होती तो खजाने में 143 करोड़ रुपए आते। मप्र के पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा का कहना है कि सरकार को इससे नुकसान होता है। दरअसल, यह दबाव में बनी परंपरा है, जो सिर्फ ग्वालियर मेले में लागू है। यदि छूट देनी है तो पूरे प्रदेश में होनी चाहिए।
इस बार भी वाहनों पर टैक्स से 50% छूट का नोटिफिकेशन एक जनवरी को जारी हो गया। इस छूट पर अब सवाल खड़े हुए हैं। परिवहन विभाग के आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि 1991 में कराधान अधिनियम आया। इसमें सेक्शन 21(1) में कर निर्धारण का प्रावधान है। इसमें कहा गया है कि सरकार चाहे तो आंशिक या पूरी छूट दे सकती है। कोविड के दौरान इसी आधार पर टैक्स से पूरी छूट दी गई, लेकिन ग्वालियर मेला आंशिक छूट का प्रावधान ले रहा है।
2019 में सिंधिया ने लिखे थे कई पत्र 2019 में कमलनाथ सरकार थी, तब सिंधिया द्वारा कई पत्र लिखने के बाद छूट लागू हुई थी। ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण इसे संचालित करता है। 100 एकड़ में लगने वाले मेले में 33 सालों से छूट जारी है।
टैक्स छूट का सबको फायदा मिले : शर्मा पूर्व मुख्य सचिव शर्मा का कहना है कि मेला 25 दिसंबर से 25 फरवरी तक चलना है। हर साल यह दो से ढाई महीने चलता है। इतने दिन पूरे प्रदेश में छूट दे देनी चाहिए। देखा जाए तो ग्वालियर मेले में टैक्स छूट का कोई औचित्य नहीं है। सरकार को नुकसान होता है। बाकी जनता तो पूरा टैक्स भरकर गाड़ी खरीद रही है। फिर ग्वालियर या आसपास के क्षेत्र में ही लाभ क्यों। सरकार की ऐसी कोई पॉलिसी नहीं है।
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