बेटे कैलाश विजयवर्गीय के अलावा इंदौर की बेटी और भोपाल की गोविंदपुरा सीट से विधायक कृष्णा गौर भी डॉ. मोहन यादव सरकार में मंत्री बनी हैं। उनका मायका इंदौर के काछी मोहल्ला में है और यहीं उनका बचपन बीता। बड़े भाई-बहनों में झगड़ा हो जाता था, तो छोटी होने के बावजूद उन्हें समझाती थी। खाने में टिक्कड़-आलू मैथी की सब्जी और मक्खन बड़े पसंद हैं। शादी के बाद भोपाल गई तो वहां राजनीति को बहुत करीब से देखा। पति की मौत के 4 दिन बाद ही जनसेवा के लिए कमर कस ली थी।
कुश्ती में विक्रम अवार्डी भाई गोपाल सिंह यादव ने कृष्णा के बचपन और परिवार के बारे में दैनिक भास्कर से चर्चा करते हुए कहा, हमारा कुल 10 भाई-बहनों का परिवार है। बड़े भाई स्व.मदन सिंह यादव, मैं और कृष्णा सहित 5 बहने हैं। मैं गोद गया था, तो वहां मेरी दो बहनें और हैं। कृष्णा बचपन से ही खुशमिजाज है। वो परिवार, भाई-बहनों के प्रति हमेशा एक्टिव रही। उसका शुरू से ही अलग ही नजरिया रहा है। सामाजिक कार्यक्रमों में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेती थी। बड़ा परिवार है तो शादी समारोह में भी जाती और वहां भी खूब काम करती। पिताजी ने नवरात्रि गरबों की आधार शिला रखी थी। सबसे पहले गुजराती समाज के खातीपुरा में गरबे होते थे और दूसरे नंबर पर हमारे यहां काछी मोहल्ले में गरबे होते थे। इसके बाद ही पूरे इंदौर में गरबे शुरू हुए हैं। बहन कृष्णा को गरबों का बहुत शौक था। इस दौरान किसी भी प्रसंग के चित्रण में वो ऐसा अभिनय करती थी कि उस पात्र को जीवंत कर देती थी।
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बहन कृष्णा को जब हमारे बहनोई (स्व.पुरुषोत्तम गौर) देखने आए तो उनका ये कहना था कि जिससे मैं शादी करू वो परफेक्ट हो, क्योंकि राजनीतिक परिवार है। पिताजी (पूर्व मुख्यमंत्री स्व.बाबूलाल गौर) राजनीति में थे। बहन से जब उनकी बातचीत हुई और जो-जो सवाल पूछे उनके बहन ने बहुत ही सटीक जवाब दिए तो वे खड़े हुए और बोले की मुझे लड़की (कृष्णा गौर) पसंद है। शादी की जब तैयारियां शुरू हुई तो उस समय माहौल ये था कि मैरिज गार्डन नहीं होते थे। जो भी शादी होती थी वो मोहल्ले या धर्मशाला में होती थी। बारात में सभी वरिष्ठ लोग आए थे। पिताजी ने तब बारात के ठहराने की व्यवस्था जेल रोड पर ब्राह्मण सभा की धर्मशाला में की थी। संघ से जुड़े लोग थे तो जमीन पर सोना। बैठकर भोजन करना ये सारी चीजें रहती थी। तो उस हिसाब से सारी व्यवस्था की गई। शुद्ध घी में भोजन बना था। तब सुंदरलाल पटवा, कैलाश जोशी सहित अन्य सभी आए थे।
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असमय बहनोई का जब निधन हो गया तो बहन बहुत ही नर्वस हो गई थी। बच्चे छोटे-छोटे थे। गौर साहब भी बड़े दुखी हो गए। चौथे दिन बच्चे के स्कूल में प्रोग्राम था। इस पर गौर साहब ने कहा कि बेटा (कृष्णा गौर) बच्चे के प्रोग्राम में हमें चलना है। बहन बोली की मैं तो अभी दुख से ही नहीं उबर पाई हूं। तब गौर साहब ने भगवान कृष्ण ने जैसे अर्जुन को समझाया था, वैसे ही बहन को समझाया कि बेटा तुम्हें बहुत लंबी दूरी तक चलना है। तुम्हें सारे काम करना है। ये दुख-सुख अपने लिए नहीं है। क्षेत्र की जो जनता है, उनका दुख-सुख अपने से बड़ा है। फिर वो बहन को प्रोग्राम में ले गए और उसे मजबूत बनाया। चीजों को फेस कर आगे बढ़ने के लिए कहा। उसके इरादों को दृढ़ किया।
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