सोचिए, एक आम नागरिक जिसकी उम्मीदें डॉक्टर और अस्पताल से जुड़ी होती हैं, वही अस्पताल जब ब्लैकमेलिंग और भ्रष्टाचार का अड्डा बन जाए, तो क्या हाल होगा? यूपी के संभल जिले के सरकारी अस्पताल में एक ऐसा ही चौंकाने वाला मामला सामने आया है जहाँ एक मेडिकल रिपोर्ट बनवाने के बदले ₹60,000 की रिश्वत मांगी गई। पर इस बार भ्रष्टाचार ने किसी मजबूर को नहीं, बल्कि एक जागरूक और साहसी युवक को टक्कर दी… जिसने अस्पताल की इस काली हकीकत को कैमरे में कैद कर पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दिया।
मामला कोतवाली क्षेत्र के संयुक्त जिला अस्पताल, संभल का है। एक युवक अपनी केस से जुड़ी मेडिकल रिपोर्ट बनवाने अस्पताल पहुंचा था। वहां मौजूद तीन वार्ड बॉय ने खुलकर रिश्वत की मांग की। उन्होंने रिपोर्ट जल्दी और ‘मनमुताबिक’ तैयार कराने के बदले मोटी रकम की मांग की—सीधे ₹60,000! लेकिन पीड़ित ने चुपचाप इस पूरी बातचीत को मोबाइल कैमरे में रिकॉर्ड कर लिया और सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया। वीडियो वायरल होते ही प्रशासन में हड़कंप मच गया और मामले ने तूल पकड़ लिया।
वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि कैसे वार्ड बॉय बार-बार युवक पर पैसे देने का दबाव बना रहे हैं। इस वीडियो के सामने आने के बाद मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) ने तत्काल जांच कमेटी बनाई। जांच में वीडियो की पुष्टि हुई और तीनों वार्ड बॉय को दोषी पाया गया। सीएमओ की रिपोर्ट पर एफआईआर दर्ज की गई और पुलिस ने इन कर्मचारियों के खिलाफ कार्यवाही शुरू कर दी है। यह पहली बार नहीं है जब इस अस्पताल से इस तरह की शिकायतें आई हों, लेकिन इस बार फर्क यह रहा कि पीड़ित ने सबूत के साथ मोर्चा लिया।
संभल जैसे छोटे जिले से उठी ये गूंज प्रदेश सरकार के उन दावों की पोल खोल रही है, जिनमें ‘भ्रष्टाचार मुक्त स्वास्थ्य सेवा’ की बात की जाती है। आम मरीज, खासकर गरीब तबके के लोग, जिनके लिए सरकारी अस्पताल ही एकमात्र सहारा हैं—जब उन्हें ही लूटा जाए तो ये सिर्फ व्यक्तिगत पीड़ा नहीं, बल्कि सामाजिक अन्याय बन जाता है। सवाल यह भी है कि आखिर कब तक ऐसे कर्मचारियों को संरक्षण मिलता रहेगा? क्या ये रिश्वतखोरी सिर्फ कुछ वार्ड बॉय तक सीमित है या इसके पीछे पूरा एक सिस्टम काम कर रहा है?
इस पूरे मामले ने यह साफ कर दिया है कि जन-जागरूकता और तकनीकी इस्तेमाल से आम नागरिक भी भ्रष्टाचार को मात दे सकते हैं। हमें एक ऐसा सिस्टम बनाना होगा जिसमें मरीज की आवाज सुनी जाए, ना कि पैसों से उसकी रिपोर्ट लिखी जाए। अब वक्त है कि सरकार सिर्फ जांच बैठाने से आगे बढ़कर दोषियों को जेल भेजने और अस्पतालों में पारदर्शिता लागू करने के ठोस कदम उठाए। यह सिर्फ एक मामला नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम के लिए चेतावनी है।






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