ओडिशा की नौकरशाही में इस बार की गर्मी कुछ ज़्यादा ही तेज़ है। आईएएस अधिकारियों के बीच हलचल है, फाइलें खड़खड़ा रही हैं, और ट्रांसफर ऑर्डर की दस्तक अब हर टेबल तक पहुंच चुकी है। गुरुवार, 10 अप्रैल की शाम आई और राज्य सरकार ने जैसे ही आदेश जारी किए, ऐसा लगा मानो पूरी ब्यूरोक्रेसी की धड़कन तेज़ हो गई हो। मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी की अगुवाई वाली सरकार ने एक साथ 28 आईएएस अधिकारियों की ज़िम्मेदारियां बदल दीं। ये सिर्फ तबादले नहीं हैं, ये सरकार की प्रशासनिक सोच, योजनाओं की दिशा और जमीनी हकीकत के हिसाब से ताश के पत्तों को नए सिरे से जमाने जैसा है।
इन बदलावों में 16 अधिकारियों का स्थानांतरण किया गया है, जबकि 12 को उनके वर्तमान पदों पर ही बनाए रखा गया है — मगर नया आदेश लिए तैयार। वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के विशेष सचिव धरम हंसदा को ज्वाइंट सेक्रेटरी की कमान मिली है। वहीं लिली कुमारी कुल्लू को राजस्व और आपदा प्रबंधन विभाग में विशेष सचिव से हटाकर संयुक्त सचिव बना दिया गया है। ऐसे ही मत्स्य पालन विभाग में रीना मोहपात्रा, गृह विभाग में आराधना दास, हथकरघा और वस्त्र विभाग में मधुमिता रथ, ऊर्जा विभाग में निबेदिता मिश्रा, और संसदीय विभाग में प्रताप चंद्र होटा को संयुक्त सचिव की बड़ी जिम्मेदारियाँ दी गई हैं।
सिर्फ सचिवालय के गलियारों में ही नहीं, बल्कि ज़िलों में भी प्रशासनिक बयार बदल गई है। देवगढ़ के नए कलेक्टर बने हैं काबिन्द्र कुमार साहू, जबकि नुआपाड़ा की ज़िम्मेदारी मधुसूदन दाश को सौंपी गई है। बौध ज़िले के कलेक्टर बनाए गए हैं सुब्रत कुमार पांडा। वहीं शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़ा बदलाव करते हुए श्रीकांत तराई को बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन का अध्यक्ष और बीरेंद्र कोरकोरा को सेकेंडरी एजुकेशन का डायरेक्टर नियुक्त किया गया है। पंचायती राज निदेशक के रूप में डॉ. महेश्वर की नियुक्ति ने गांवों के विकास से जुड़ी नीतियों को नई दिशा देने का संकेत दिया है।
The Khabardar News की जांच में ये सामने आया है कि इन तबादलों के पीछे सिर्फ प्रशासनिक संतुलन नहीं, बल्कि कुछ रणनीतिक संकेत भी छिपे हैं। कुछ विभागों में पिछले महीनों में काम की रफ्तार सुस्त रही थी, तो कहीं योजनाओं की जमीन पर धीमी प्रगति सरकार की चिंता बनी हुई थी। ऐसे में अनुभवी अफसरों को महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ देकर सरकार 2025 की योजनाओं को तेज़ी से लागू करवाना चाहती है। यह फेरबदल कहीं न कहीं सरकार के अपने चुनावी वादों को भी समय पर पूरा करने की रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है।





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