होली का त्योहार उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाता है कहते हैं इस दिन दुश्मन भी गले मिल जाते हैं मतभेद इस त्यौहार में कोसों दूर हो जाते हैं वही जिस घर में किसी कारण बस यह त्यौहार नहीं मनाया जाता यानी जिसके यहां गमी हो जाती है उनके यहां होली का रंग गुलाल उड़ाने के लिए पंचायत उनके घर अनरय मिटाने के लिए पहुंचती है इस पंचायत में सैकड़ों लोग शामिल होते हैं , पंचायत का एक सरपंच नियुक्त होता है वहीं सरपंच दुखी परिवार के यहां होली के रंग और गुलाल डालता है जिससे वह परिवार इस पंचायत का लोंग इलाइची और इत्र से सम्मान भी करते है ,यह परंपरा 5 सौ वर्ष पुरानी बताई जाती है बड़ी बात यह है कि इस पंचायत से घर के विवाद भी सुलझाए गए हैं पंचायत में अब बड़ी तादात में युवा भी शामिल हो रहे है, होली की अनरय पंचायत में होली के दिन सदर बाजार में गोपाल , कन्हैया लाल जी का घर के सामने बने चबूतरे पर एक पंचायत बैठती है जिसमें एक सरपंच की नियुक्ति सर्वसम्मति से होती थी सरपंच के हाथ में रंग और गुलाल की थाली दी जाती है । रंग और गुलाल सरपंच दुखी परिवार के परिवारजनों ऊपर के डालता है इससे यह मानता है कि उनका अनरय का त्यौहार रंग डालने से मिट जाता है वही बाकायदा पूरी पंचायत का दुखी परिवार लॉन्ग इलायची और बीड़ा से सम्मान करता है वहीं पंचायत होली के दिन भर ऐसे ही परिवारों के यहां पहुंचती है इसके बाद मौजूद लोग बकायदा एक कागज पर हस्ताक्षर करते हैं इसकी लिखा पढ़ी भी बर्रु की कलम से लिखा जाता है वही दिशा निर्देश भी एक कागज पर बर्रु की कलम से लिख देते हैं बरु की कलम भी आज भी मौजूद है पंचायत के सभी सदस्यों को बुलाने का काम नाई के हवाले से होता था नाई होली के 1 दिन पहले पंचायत के सभी सदस्यों से घर समाचार देता था कि पंचायत होली के दिन बैठेगी। स्थानीय लोग बताते हैं कि यह परंपरा 500 साल पुरानी है जिससे शहर में अनूठी पंचायत कहलाती है इसका मकसद उन दुखी परिवारों के यहां पहुंचना होता है जिनके यहां किसी कारणवश होली नहीं खेली जा रही है ,जानकार बताते हैं कि गाइडलाइन का पालन इस पंचायत में होगा और परंपरा भी नहीं टूटने दी जाएगी इससे दुखी परिवारों के यहां महज एक दो लोग ही रंग और गुलाल लगाने के लिए सरपंच के साथ पहुंचेंगे.