बाबा यह मेरी बहू है। इतनी सुंदर है फिर भी बेटा इसे तलाक दे रहा है। चाकू लेकर मेरे पीछे पड़ा है। कहता है तुझे मार दूंगा।
बाबा आंख बंद करते हैं। जोर से बोलते हैं शिव… तुम्हारे बेटे के सिर पर कर्ज है। इसलिए वो इसे नहीं रख रहा।
हां, बाबा सच है।
बाबा मन में मंत्र पढ़ने जैसा कुछ बुदबुदाते हैं। फिर कहते हैं- प्रहार… कपाल खोला जाए, पति-पत्नी में प्रेम की स्मृतियां डाली जाएं…शिव।
आंख बंद करो। पति का ध्यान करो…. प्रेम उमड़ रहा है न?
हां, बाबा प्रेम उमड़ रहा है।
शिव…बैलेंस।
परिवार लौट जाता है। दूसरा परिवार माइक के सामने आकर खड़ा होता है। पीछे ऐसे बेहिसाब लोगों की लाइन लगी है। ये नजारा है कानपुर के करौली सरकार धाम का। मान्यता ये कि यहां आने से बड़ी से बड़ी बीमारी ठीक जाती है।
रात 8 बजे का वक्त। टीन की शेड के नीचे हजारों लोग हवन कर रहे। ओम नम: शिवाय, जय शिव के नारे गूंज रहे हैं। कोई त्रिशूल से माथा रगड़ रहा, मन्नतें मांग रहा तो कोई बाबा से मिलने के लिए सुबह से लाइन में लगा है।
करीब 14 एकड़ में फैला यह आश्रम अपने आप में एक शहर है। यहां हर दिन 3500 से 5000 तक लोग आते हैं। अमावस्या वाले दिन यह तादाद 20 हजार तक पहुंच जाती है।
यहां रात-दिन का पता नहीं चलता। लोग चौबीसों घंटे हवन करते रहते हैं। इसके लिए बाकायदा उन्हें आश्रम से हवन किट मिलती है।
आश्रम में दो मंदिर हैं। एक करौली सरकार यानी राधा रमण मिश्र का और दूसरा मां कामाख्या का। डॉ. संतोष सिंह भदौरिया आश्रम के बाबा हैं। लोग इन्हें करौली बाबा के नाम से जानते हैं। पहले ये किसान नेता थे। लंबे समय तक आयुर्वेद के डॉक्टर रहे। तीन साल से आश्रम चला रहे हैं। पिछले दिनों टाटा कैंसर इंस्टीट्यूट में हवन करके आए हैं।
मैं पूरा दिन और पूरी रात यानी करीब 24 घंटे यहां रुकी। बाबा को पता लगा कि कोई पत्रकार आई है, तो उन्होंने मुझे अपने बगल में बैठाया। बाबा शीशे के एक केबिन में बैठे हैं। उनकी सुरक्षा में 5-6 गनर मुस्तैद हैं।
सुबह के 8 बजे हैं। बाबा का दरबार शुरू होने को है। बाबा से बात करने के लिए 5100 रुपए का टोकन लगता है। बाबा के सामने लगे माइक के पास लोग बारी-बारी आते हैं।
बाबा मैं हरियाणा से आई हूं। मेरा बच्चा नहीं हो रहा है।
बाबा शिव, प्रहार बोलते हुए कुछ मंत्र पढ़ते हैं। फिर कहते हैं इनका जननांग साफ किया जाए, प्राइवेट पार्ट शुद्ध किया जाए। शिव स्थान पवित्र किया जाए। बच्चा पैदा होने की स्मृति डाली जाए। बैलेंस।
महिला वापस चली जाती है।
छतीसगढ़, बिलासपुर से एक महिला आई है। कहती है- बाबा मेरा वजन काफी बढ़ गया है। मुझे पतला होना है। बाबा शिव, प्रहार बोलते हुए कहते हैं कपाल खोला जाए। पतला होने की स्मृति डाली जाए। बैलेंस।
फिर बोलते हैं कि लग रहा है न कि तुम पतली हो गई हो… महिला बोलती है हां बाबा लग रहा है।
एक शख्स स्वीडन से पहुंचा। काफी परेशान लग रहा है। बाबा उससे कहते हैं,’आपकी बहू के यूट्रस की सर्जरी गलत कर दी गई थी। आपकी हार्ट की आर्टरीज खराब हो गई थी। इंफेक्शन बहुत ज्यादा था। अब दरबार ने इसे ठीक कर दिया है। किडनी और लिवर बदल दिया है। हड्डियां मजबूत की गई हैं।
यानी बाबा बैठे-बैठे किसी की किडनी बदलने का दावा कर रहे तो किसी की गंभीर बीमारी ठीक करने का। न सिर्फ दावा बल्कि लोगों से खुद ये बात कहलवा भी रहे हैं। कई लोग उसी वक्त कहने लगते हैं बाबा बीमारी ठीक हो गई। आराम मिल रहा है।
पहली नजर में मुझे लगा कि यहां आने वाले ज्यादातर लोग कम पढ़े-लिखे होंगे, लेकिन ऐसा है नहीं।
यहां मुझे 22 साल का एक लड़का मिला। दिल्ली में क्रिप्टो ट्रेडर है। अपने साइंटिस्ट पिता के साथ बाबा के दरबार में आया है। कहता है, ‘मैं जन्म से ही नेत्रहीन था। हर बड़े डॉक्टर को दिखाया। कोई फायदा नहीं हुआ। फिर गूगल पर मुझे करौली बाबा के बारे में पता चला। इसके बाद मैं यहां आया। 9 दिन हवन किया। बाबा ने आंखों पर हाथ फेरा और मुझे दिखाई देने लगा।
आश्रम में ही मुझे जबलपुर की पूजा मिलीं। कहती हैं- मेरे बेटे का दिमाग ठीक तरह से काम नहीं करता है। इलाज पर 10 लाख रुपए खर्च कर चुकी हूं। कोई फायदा नहीं हुआ। यहां चार दिन में ही मुझे फर्क दिख रहा है। अब वापस जा रही हूं। पैसों की व्यवस्था करनी है। एक से डेढ़ लाख रुपए का खर्च आएगा।
भाग्यश्री अमेरिका से आई हैं। कहती हैं, ‘बेटी का ब्रेन डेवलप नहीं हो पाया है। हर जगह इलाज कराकर थक चुकी हूंं। मेरे एक दोस्त ने बाबा के बारे में बताया। बहुत भरोसे के साथ यहां आई हूं।’
चार घंटे बाद यानी दोपहर 12 बजे बाबा ब्रेक लेते हैं। दरबार से उठकर वे अपने रूम में जाते हैं। सेवकों से मुझे भी अपने रूम में ले आने का आदेश देते हैं।
जैसे ही मैं उनके कमरे में पहुंची मेरी आंखें चौंधिया गईं। फाइव स्टार होटल की तरह लग्जरी रूम। जिसमें एक से बढ़कर एक कीमती आइटम्स। सामने नरमुंड पहने मां काली की बड़ी सी फोटो लगी है। पकवानों से बाबा का टेबल भरा था। उन्होंने मुझे भी शानदार नाश्ता कराया।
इसके बाद बाबा से बातचीत शुरू होती है। मैं पूछती हूं- आप लोगों का इलाज कैसे करते हैं? इसके पीछे का साइंस क्या है? आप मेडिकल साइंस को चुनौती तो नहीं दे रहे?
बाबा कहते हैं, ’मेडिकल साइंस शरीर का इलाज करता है और यहां मन का इलाज होता है। यह वैदिक साइंस है, जिसमें तंत्र से इलाज किया जाता है। ज्यादातर लोग मन के रोगी हैं।
इसलिए आपने देखा कि कई पागल खड़े-खड़े ठीक हो जाते हैं। यहां हवन करने से एनर्जी क्रिएट होती है, जो बड़ी एनर्जी यानी भगवान की एनर्जी से मिलती है। इससे मन शुद्ध हो जाता है और बीमारियां ठीक हो जाती हैं।’
वे कहते हैं, ’भूत-प्रेत कुछ नहीं होता। ये सारी बीमारियां पितृ दोष और स्मृतियों की वजह से होती हैं। स्मृतियां कभी नष्ट नहीं होतीं। जैसे कोई आदमी मरता है तो उसकी कब्र के आसपास कुछ स्मृतियां छूट जाती हैं। यही स्मृतियां किसी के दिमाग में घुस जाती हैं, तो लोग कहने लगते हैं कि इस पर भूत सवार हो गया है।’
बाबा कहते हैं, ‘मैं तुम्हारी स्मृति किसी और में डालकर उसे बीमार कर सकता हूं और किसी और की स्मृति तुम्हारे अंदर डालकर तुम्हें बीमारी दे सकता हूं। मैं पितृ दोष और 27 जन्मों की स्मृतियों का इलाज करता हूं। सबके दिमाग पर लेपन लगाता हूं ताकि निगेटिव स्मृतियां खत्म हो जाएं।’
बातचीत के बीच ही बाबा के पास कई बड़ी हस्तियों और अधिकारियों के फोन आते हैं। मेरे सामने ही उनके वॉट्सऐप पर वर्दी पहने एक पुलिस ऑफिसर का वीडियो कॉल आया। वे किसी सिफारिश की बात बाबा से कर रहे थे।
बाबा फिर से दरबार में जाते हैं। मैं भी उनके साथ दरबार में जाती हूं। रात के करीब एक से दो बजे तक बाबा का दरबार लगता है। इस दौरान वे हर चार से पांच घंटे बाद कुछ देर के लिए ब्रेक लेते हैं।
रात दो बजे से लेकर सुबह पांच बजे तक वे अपने बंद कमरे में तंत्र साधना करते हैं। इसके बाद वे आराम करते हैं और फिर स्नान वैगरह करके सुबह के दरबार की तैयारी में जुट जाते हैं। ये उनकी दिनचर्या है।
यहां आने वाले हर व्यक्ति को कम से कम 6600 रुपए तो देना ही होगा
आश्रम में आने के बाद सबसे पहले 100 रुपए में रजिस्ट्रेशन कराना होता है। इसके बाद 100 रुपए बंधन का चार्ज लगता है। बंधन यानी कमर पर सफेद धागा बांध दिया जाता है। इसे हर तीन महीने में रिन्यू भी कराना होता है।
इसके बाद 100-100 रुपए की दो अर्जियां दोनों दरबार के लिए लगती हैं। साथ ही उन्हें 8वें और 9वें दिन के हवन में शामिल होना होता है। इसके लिए करीब 6200 रुपए लगते हैं। यानी यहां आने वाले हर शख्स को कम से कम 6600 रुपए तो खर्च करने ही होंगे।
एक दिन में इलाज चाहिए तो 1.51 लाख रुपए का खर्च
ये तो आश्रम तक पहुंचने की बात हो गई। अगर कोई यहां हवन करना चाहता है तो मैं उसका भी गणित बता देती हूं। आश्रम की तरफ से 3500 रुपए का एक हवन किट मिलता है।
आपको कम से कम 9 हवन करने ही होंगे। यानी हर दिन के लिए एक किट खरीदनी होगी। जिसका खर्च 31,500 रुपए आएगा। अगर आप 9 दिनों तक आश्रम में रुकते हैं और खाना-पीना करते हैं तो उसका खर्च अलग से।
जो लोग हवन नहीं करना चाहते, वे अर्जी लगाने के बाद लौट जाते हैं। इसे नमन प्रक्रिया कहा जाता है।
यह खर्च व्यक्तिगत है। अगर आप परिवार के साथ आते हैं तो हर सदस्य के लिए रजिस्ट्रेशन, बंधन और अर्जियां लगेंगी।
जो लोग 9 दिन हवन नहीं कर सकते या जिन्हें जल्दी इलाज चाहिए। उनके लिए एक दिन का भी विकल्प है। इसका खर्च 1.51 लाख रुपए तक आता है। इसमें हवन के साथ कई पंडित मिलकर रुद्राभिषेक और पूजा-पाठ कराते हैं।
बाबा ब्लैक मैजिक यानी काला जादू से भी छुटकारा दिलाने का दावा करते हैं। इसके लिए 2100 रुपए फीस देनी होती है। इसके अलावा वे आरोग्य हवन भी कराते हैं। इसके लिए 21 हजार रुपए लगते हैं।
अलग-अलग लोगों से बात करने के बाद मुझे पता चला कि यहां आने वाला कमोबेश हर परिवार एक से डेढ़ लाख रुपए खर्च कर ही देता है। इस तरह अगर बाबा के दरबार के एक दिन का हिसाब-किताब करें तो करोड़ रुपए का आंकड़ा आसानी से पार हो जाएगा।
17 देशों में बाबा के भक्त, करोड़ों का साम्राज्य, कोई खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं करता
बाबा ने तीन साल में करोड़ों का साम्राज्य खड़ा किया है। आश्रम के लोग बताते हैं कि 17 देशों में बाबा के भक्त हैं। कई भक्त उन्हें लाखों रुपए का सामान भी भेंट करते हैं। पैसे-रुपए लेन-देन सब कुछ मैनेज बाबा के बेटे लव और कुश करते हैं। आश्रम में चारों तरफ गनर खड़े रहते हैं।
आश्रम के आस-पास भी बाबा का रसूख दिखता है। मैंने जिन लोगों से भी बाबा के बारे में बात की, सब या तो बाबा के फेवर में बोले या मेरे सवालों के जवाब दिए बिना चले गए।
त्रांत्रिक बोले- जादू-टोना, बुरी नजर, सुख-दुख सबका इलाज तंत्र के पास है
कोलकाता का तारापीठ शक्ति पीठ है। यहां के तांत्रिक संजय नाथ अघोरी बताते हैं कि तंत्र एक साइंस है। आदिकाल से है। जब विज्ञान नहीं था तब भी यह था और जब विज्ञान नहीं होगा तब भी तंत्र रहेगा। हमारे पास पढ़े-लिखे, अनपढ़ और अमीर-गरीब सब लोग आते हैं। इसका शिक्षा से क्या लेना देना। जादू-टोना, बुरी नजर, सुख-दुख सबका इलाज तंत्र के पास है।
डॉक्टर बोले- मानसिक रूप से बीमार और गरीब बाबाओं के पास जाते हैं
डॉ. संजीव भाटिया चंडीगढ़ के ग्लोबल हेल्थ केयर क्लिनिक में डायरेक्टर हैं।
वे कहते हैं, ’कोई भी बीमारी होती है तो उसके लक्षण होते हैं, वजह होती है। साइंटिफिक तरीके से उसकी जांच की जाती है और उसका इलाज किया जाता है। कोई झाड़-फूंक से बीमारी को ठीक नहीं कर सकता है। दरअसल कई मरीज मानसिक तौर पर कमजोर होते हैं तो कई आर्थिक रूप से। ऐसे लोग ही बाबाओं के पास जाते हैं।’
साइकोलॉजिस्ट कहते हैं- जब विश्वास और मान्यता लॉजिक पर हावी हो जाती है, तब ऐसा होता है
NIMHANS बेंगलुरु के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. आशीष चेरिअन इस तरह की आस्था और बिलीफ पर रिसर्च कर चुके हैं। वे कहते हैं, ‘यह एक तरह की मानसिक स्थिति है, जिसमें आदमी ‘मास बिलीफ’ में भरोसा करने लगता है। ऐसे लोगों को सजेस्टिबल पीपल कहते हैं। ये लोग आसानी से दूसरों की बातों में आ जाते हैं।’
दिल्ली की साइकोलॉजिस्ट डॉ. गीतांजली कुमार कहती हैं, ‘किसी जगह पर कुछ लोग जाते हैं, फिर वहां की बातें दूसरों से शेयर करते हैं। दूसरे को भरोसा होता है तो वह उस जगह पर जाता है और फिर तीसरे से अपना एक्सपीरियंस शेयर करता है।
ये लोग खुद ही सोचने लगते हैं कि वहां जाने से वे ठीक हो रहे हैं या उनका काम हो रहा है। उनके मन में ये बात बैठ जाती है। इसे प्लेसिबो इफेक्ट कहते हैं। यहां विश्वास और मान्यता लॉजिक पर हावी होती है।’