सेला टनल का उद्घाटन, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया, भारतीय सेना के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके बनने से, ईटानगर से तवांग जाने का रास्ता सबसे आसान और सुरक्षित हो जाएगा।
लेखक —— शेरसिंह कुस्तवार
सेला टनल, अरुणाचल प्रदेश में भारतीय सेना के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। इस टनल के बनने से, ईटानगर से तवांग जाने का रास्ता सबसे आसान और सुरक्षित हो जाएगा। यह टनल तापमान -20 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाने वाले कठिन मौसम की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार किया गया है।
यह टनल, जिसे सेला टनल के नाम से जाना जाता है, अरुणाचल प्रदेश के पहाड़ों के नीचे से गुजरता है। इस टनल का निर्माण 5 साल में पूरा किया गया है।
इस टनल का निर्माण भारतीय सेना की बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (BRO) ने किया है। यह टनल रणनीतिक रूप से अहम है, क्योंकि यह ‘सेला पास’ के पास है, जो कि चीनी सेना को LAC से साफ नजर आता है।
इस टनल का निर्माण, चीन की तरफ से बीते सालों में फिर बढ़ी आक्रामकता को देखते हुए केंद्र सरकार ने किया था। इससे सेना की ताकत और मनोबल बढ़ा है, जबकि चीन की टेंशन बढ़ गई है।
इस टनल का नाम ‘सेला’ रखा गया है उस लव स्टोरी के आधार पर जो 1962 में चीन-भारत युद्ध के दौरान हुई थी। इस लव स्टोरी में जसवंत सिंह रावत और सेला की कहानी है, जो तवांग सेक्टर में हुई थी। जसवंत सिंह रावत ने सेला के साथ चीनी सेना के सामने बहादुरी से लड़ते हुए अपनी शहादत पाई थी।
नवंबर 1962 की बात है। चीन और भारत के बीच जंग शुरू हुए 27 दिन बीत चुके थे। तभी तवांग सेक्टर पर चीनी सैनिकों ने हमले तेज कर दिए। तवांग के सेला पास से 20 किलोमीटर ऊपर खारसा ओल्ड सेक्टर में भारतीय सेना के गढ़वाल राइफल्स की चौथी बटालियन तैनात थी।
चीनी सेना आधुनिक हथियारों के साथ घुसी और गढ़वाल राइफल्स के ज्यादातर जवान शहीद हो गए। इसी बटालियन के एक राइफलमैन थे जसवंत सिंह रावत। जसवंत सिंह रावत ने अकेले ही 10 हजार फीट की ऊंचाई पर मोर्चा संभाला, उनके साथ स्थानीय मोनपा जनजाति की दो लड़कियां सेला और नूरा भी थीं। सेला उसके गांव के पास तैनात जसवंत सिंह रावत से प्यार करती थी। रावत जब चीनी सेना का सामना करने की तैयारी कर रहे थे, तब सेला ने उनसे कहा कि वह भी उनके साथ चीनी सेना से लड़ेगी।
सेला के साथ उसकी दोस्त नूरा ने भी दुश्मनों से लड़ने का फैसला किया। इस दोनों लड़कियों को इलाके के बारे में पता था, उन्होंने रावत के साथ मिलकर अलग-अलग जगहों पर बंदूकें लगा दीं।
माना जाता है कि कई दिन तक चीनी सेना अकेले जंग लड़ रहे जसवंत को भारतीय सैनिकों की टुकड़ी समझती रही। इस जवाबी हमले में करीब 300 चीनी सैनिक मारे गए थे। बाद में चीनी सेना ने उन्हें घेर लिया, सेला ग्रेनेड हमले में मारी गई और नूरा पकड़ी गई।
कहा जाता है कि जसवंत ने खुद को गोली मार ली और चीनी सेना उनका सिर काटकर अपने साथ ले गई। बाद में एक चीनी कमांडर ने वो सिर भारत को लौटा दिया।
भारतीय सैनिक मानते हैं कि जसवंत सिंह की आत्मा आज भी भारत की पूर्वी सीमा की रक्षा करती है। आज इस जगह का नाम जसवंतगढ़ है। जसवंत सिंह के साथ शहीद हुई उस लड़की के नाम पर ही सेला पास नाम रखा गया था। तवांग के जिन लोगों ने वो युद्ध देखा, वो बताते हैं कि चीनी सेना लौटी, तो जसवंतगढ़ से सेला पास और तवांग तक सड़कों के किनारे भारतीय जवानों की लाशें बिखरी पड़ी थीं।
भविष्य में 1962 जैसी स्थिति दोबारा न देखना पड़े, इसीलिए सरकार ने सेला टनल बनवाई है, ताकि जरूरत पड़ने पर किसी भी मौसम में सैनिकों और हथियारों की सप्लाई यहां आसानी से हो सके।
चीन की तरफ से बीते सालों में फिर बढ़ी आक्रामकता को देखते हुए 2022 की शुरुआत में केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर में इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने के लिए 1.6 लाख करोड़ रुपए देने का ऐलान किया था। इसमें से अरुणाचल प्रदेश के हिस्से में सबसे ज्यादा 44,000 करोड़ रुपए आए। ज्यादातर प्रोजेक्ट चीन-तिब्बत बॉर्डर यानी LAC पर चल रहे हैं।
सेला टनल बन जाने से अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर से तवांग जाने का रास्ता 12 महीने खुला रहेगा। अब ये दूरी सिर्फ 8 घटे में तय करना संभव होगा। PM नरेंद्र मोदी ने शनिवार को 13 हजार फीट की ऊंचाई पर बनी दुनिया की सबसे लंबी डबल लेन टनल का उद्घाटन किया।
इस टनल के उद्घाटन से भारतीय सेना और आम लोगों की LAC के इलाकों तक पहुंच सुरक्षित और आसान हो जाएगी। इसके अलावा, टनल में स्टेट ऑफ द आर्ट लाइटिंग सिस्टम, वेंटिलेशन सिस्टम, पब्लिक एड्रेस सिस्टम और फायर फाइटिंग सिस्टम जैसी मॉडर्न सुविधाएं हैं।
आजादी के 76 साल पूरे होने के बाद भी बर्फबारी की वजह से ईटानगर से तवांग जाने का रास्ता साल में 7 महीने तक बंद रहता था। 448 किलोमीटर की दूरी तय करने के लिए 12 घंटे से ज्यादा समय लगते थे। अब सेला टनल बन जाने के बाद साल के 12 महीने ये रास्ता खुला रहेगा। सेला टनल प्रोजेक्ट के चीफ इंजीनियर और ब्रिगेडियर रमन कुमार बताते हैं कि भारतीय सेना की बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन यानी BRO इससे 2019 से जुड़ी है।